गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 5
क्षीरसागर शंतनु होगा। वसुओं में श्रेष्ठ द्रोण साक्षात भीष्म पितामह के रूप में उत्पन्न होंगे। दिवोदास शल के रूप में एवं भग नाम के सूर्य धृतराष्ट्र के रूप में अवतीर्ण होंगे। पूषा नाम से विख्यात देवता पाण्डु होंगे। सत्पुरुषों में आदर पाने वाले धर्मराज ही राजा युधिष्ठिर के रूप में अवतार लेंगे। वायु देवता महान पराक्रमी भीमसेन के तथा स्वायम्भुव मनु अर्जुन के वेष में प्रकट होंगे। शतरूपाजी सुभद्रा होंगी और सूर्यनारायण कर्ण के रूप से अवतार लेंगे। अश्विनी कुमार नकुल एवं सहदेव होंगे। धाता महान बलशाली बाह्लीक नाम से विख्यात होंगे। अग्निदेवता महान प्रतापी द्रोणाचार्य के रूप में अवतार लेंगे। कलिका अंश दुर्योधन होगा। चन्द्रमा अभिमन्यु के रूप में अवतार लेंगे। पृथ्वी पर द्रोणपुत्र अश्वत्थामा साक्षात भगवान शंकर का रूप होगा। इस प्रकार तुम सब देवता मेरी आज्ञा के अनुसार अपने अंशों और स्त्रियों के साथ यदुवंशी, कुरुवंशी तथा अन्यान्य वंशों के राजाओं के कुल में प्रकट होओ। पूर्व समय में मेरे जितने अवतार हो चुके हैं, उनकी रानियाँ रमा का अंश रही हैं। वे भी मेरी रानियों में सोलह हजार की संख्या में प्रकट होंगी। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! कमलासन ब्रह्मा से यों कहकर भगवन श्रीहरि ने दिव्यरूपधारिणी भगवती योग माया कहा। भगवान श्रीहरि बोले- महामते ! तुम देवकी के सातवें गर्भ को खींचकर उसे वसुदेव की पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दो। वे देवी कंस के डर से व्रज नन्द के घर रहती हैं। साथ ही तुम भी ऐसे अलौकिक कार्य करके नन्दरानी के गर्भ से प्रकट हो जाना। श्रीनारदजी कहते हैं- परमश्रेष्ठ राजन ! भगवान श्रीकृष्ण वचन सुनकर सम्पूर्ण देवताओं के साथ ब्रह्माजी ने परात्पर भगवान श्रीकृष्ण को प्रणाम किया और अपने वचनों द्वारा पृथ्वी देवी को धीरज दे, वे अपने धाम को चले गये। मिथिलेश्वर जनक ! तुम भगवान श्रीकृष्णचन्द्र को साक्षात परिपूर्णतम परमात्मा समझो। कंस आदि दुष्टों का विनाश करने के लिये ही ये इस धराधाम पर पधारे हैं। शरीर में जितने रोएँ हैं, उतनी जिह्वाएँ हो जायँ, तब भी भगवान श्रीकृष्ण के असंख्य महान गुणों का वर्णन नहीं किया जा सकता। महाराज ! जिस प्रकार पक्षीगण अपनी शक्ति के अनुसार ही आकाश में उड़ते हैं, वैसे ही ज्ञानीजन भी अपनी मति एवं शक्ति के अनुसार ही भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की दिव्य लीलाओं का गायन करते हैं। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में गोलोक खण्डल के अंतर्गत नारद-बहुलाश्व संवाद में ‘अवतार व्यवस्था का वर्णन’ नामक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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