गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 6
दूत बोला- महाराज ! मथुरा में शूरपुत्र वसुदेव अवश्य हैं, किंतु संतानहीन होने के कारण अत्यन्त दीन की भाँति जीवन व्यतीय करते हैं। सुना है कि पहले उनके अनेक पुत्र हुए थे, जो कंस के हाथ से मारे गये हैं। एक कन्या बची थी, किंतु वह भी कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गयी। यह वृतान्त सुनकर मैं यदुपुरी से धीरे-धीरे बाहर निकला। वृन्दावन में कालिन्दी के सुन्दर एवं रमणीय तटपर तटपर विचरते हुए हुए मैंने लताओं के समूह में अकस्मात् एक शिशु देखा। राजन ! गोपों के मध्य दूसरा कोई ऐसा बालक नहीं था, जिसके लक्षण उसके समान हों। उस बालके के वक्ष:स्थल पर श्रीवत्सा का चिन्ह था। उसकी अंगकान्ति मेघ के समान श्याम थी और वह वनमाला धारण किये अत्यन्त सुन्दर दिखायी देता था। परंतु अन्तर इतना ही है कि उस गोप-बालक के दो ही बाँहे थीं और आपने वसुदेव कुमार श्रीहरि को चतुर्भुज बताया था। नरेश्वर ! बताइये, अब क्या करना चाहिये ? क्योंकि मुनि की बात झूठी नहीं हो सकती। प्रभो ! जहाँ जिस तरह आपकी इच्छा हो, उसके अनुसार वहाँ-वहाँ- मुझे भेजिये। श्रीनारदजी कहते हैं- राजन ! राजा विमल जब इस प्रकार विस्मित होकर विचार कर रहे थे, उसी समय हस्तिनापुर से सिन्धुदेश को जीतने के लिये भीष्म आये। विमल बोले- महाबुद्धिमान भीष्म ! पहले याज्ञवल्क्य जी ने मुझसे कहा कहा कि मथुरा में साक्षात श्रीहरि वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से प्रकट होंगे, इसमें संशय नहीं है। परंतु इस समय वसुदेव के यहाँ परमेश्वर श्रीहरि का प्राकट्य नहीं हुआ है साथ ही ऋषि की बात झूठी हो नहीं सकती, अत: इस समय मैं अपनी कन्याओं का दान किसके हाथ में करूँ। आप साक्षात महाभागवत हैं और पूर्वापर की बातें जानने वालों में सबसे श्रेष्ठ हैं। बचपन से ही आपने इन्द्रियों पर विजय पायी है। आप वीर, धनुर्धर एवं वसुओं में श्रेष्ठ हैं। इसलिये यह बताइये कि अब मुझे क्या करना चाहिये। श्रीनारदजी कहते हैं- गंगानन्दन भीष्म जी महान भगवद्भक्त विद्वान, दिव्यदृष्टि से सम्पन्न, धर्म के तत्वज्ञ तथा श्रीकृष्ण के प्रभाव को जानने वाले थे। उन्होंने राजा विमल से कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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