गर्ग संहिता
माधुर्य खण्ड : अध्याय 5
याज्ञवल्क्य बोले- राजेन्द्र ! इस जन्म में तो तुम्हारे भाग्य में पुत्र नहीं है, नहीं हैं, परंतु नृपश्रेष्ठ ! तुम्हे पुत्रियाँ करोड़ों की संख्या में प्राप्त होंगी। राजा ने कहा- मुनीन्द्र ! पुत्र के बिना कोई भी इस भूतल पर पूर्वजों के ऋण से मुक्त नहीं होता। पुत्रहीन के घर में सदा ही व्यथा बनी रहती है। उसके इसलोक या परलोक में कुछ भी सुख नहीं मिलता ।।13।। यागवल्क्य बोले- राजेन्द्र ! खेद न करो। भविष्य में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होने वाला है। तुम उन्हीं को दहेज के साथ अपनी सब पुत्रियाँ समर्पित कर देना। नृपश्रेष्ठ ! उसी कर्म से तुम देवताओं, ऋषियों तथा पितरों के ऋण से छूटकर परमोक्ष प्राप्त कर लोगे। श्रीनारदजी कहते हैं- महामुनि का यह वचन सुनकर उस समय राजा को बड़ा हर्ष हुआ। उन्होंने महर्षि याज्ञवल्क्य से पुन: अपना संदेह पूछा ? राजा बोले- मुनीश्वर ! कितने वर्ष बीतने पर किसी देश में और किस कुल में साक्षात श्रीहरि अवतीर्ण होंगे ? उस समय उनका रूप-रंग क्या होगा ? यागवल्क्य बोले- महाबाहो ! इस द्वापरयुग के जो अवशेष वर्ष हैं, उन्हीं में तुम्हारे राज्यकाल से एक सौ पंद्रह वर्ष व्यतीत होने पर यादवपुरी मथुरा में यदुकुल के भीतर भद्रपदमास, कृष्णपक्ष, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र, हर्षण योग, वृषलग्न, वव करण और अष्टमी तिथि में आधी रात के समय चन्द्रोदय-काल में, जबकि सब कुछ अन्धकार से आच्छन्न होगा, वसुदेव-भवन में देवकी के गर्भ से साक्षात श्रीहरि का आविर्भाव होगा- ठीक इसी तरह जैसे यज्ञ में अरणि-काष्ठ से अग्नि का प्राकट्य होता है। भगवान के वक्ष:स्थल पर श्रीवत्स का चिन्ह होगा। उनकी अंगकान्ति मेघ के समान श्याम होगी। वे वनमाला से अलंकृत और अतीव सुन्दर होंगे। पीताम्बरधारी, कमलनयन तथा अवतारकाल में चतुर्भुज होंगे। तुम उन्हें अपनी कन्याएँ देना। तुम्हारी आयु अभी बहुत है। तुम उस समय तक जीवित रहोगे, इसमें संशय नहीं है। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में माधुर्य खण्ड के अन्तर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘अयोध्यावासिनी गोपांगनाओं का उपाख्यान' नामक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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