गर्ग संहिता
गिरिराजखण्ड : अध्याय 10
वेंक्टाचल, वारिधार, महेन्द्र और विन्ध्याचल पर एक अश्व मेध यज्ञ का अनुष्ठान करके मनुष्य स्वर्गलोक का अधिपति हो जाता है, परंतु इस गोवर्धन पर्वत पर जो यज्ञ करके उत्तम दक्षिणा देता है, वह स्वर्गलोग के मस्तक पर पैर रखकर भगवान विष्णु के धाम में चला जाता है। द्विजोत्तम ! चित्रकूट पर्वत पर श्रीरामनवमी के दिन पयस्विनी (मन्दाकिनी) मे, वैशाख की तृतीया को पारियात्र पर्वत पर, पूर्णिमा को कुकुराचल पर, द्वादशी के दिन नीलाचल पर, ओर सम्तमी को इन्द्रकील पर्वत पर जो स्नान, दान और तप आदि पुण्यकर्म किये जाते हैं, वे सब कोटिगुने हो जाते हैं। ब्रह्मन ! इसी प्रकार भारत वर्ष के गोवर्धन पर तीर्थ में जो स्नानादि शुभकर्म किया जाता है वह सब अनन्तगुना हो जाता है। बृहस्पति के सिंहराशि में स्थित होने पर गोदावरी में और कुम्भराशि में, स्थित होने पर गोदावरी में और कुम्भ राशि में स्थित होने पर हरद्वार में, पुष्य नक्षत्र आने पर पुष्कर में, सूर्यग्रहण होने पर कुरुक्षेत्र में, चन्द्रग्रहण होने पर काशी में, फाल्गुन आने पर नैमिषारण्य में, एकादशी के दिन शूकरतीर्थ में, कार्तिक की पूर्णिमा को गढ मुक्तेश्वर में, जन्माष्टमी के दिन मथुरा में, द्वादशी के दिन खाण्डव-वन में, कार्तिक की पूर्णिमा को वटेश्वर नामक महावट के पास, मकर-सक्रांति लगने पर प्रयाग-तीर्थ में वैधृतियोग आने पर बर्हिष्मति में, श्रीरामनवमी के दिन अयोध्यागत सरयू के तट पर, शिव-चतुर्दशी को शुभ वैद्यनाथ-वन में, सोमवारगत अमावस्या को गंगासागर संगम में, दशमी को सेतुबन्ध पर तथा सप्तमी को श्रीरंगतीर्थ में किया हुआ दान, तप, स्नान, जप, देवपूजन, ब्रह्मणपूजन आदि जो शुभकर्म किया जाता है, द्विजोत्तम ! वह कोटिगुना हो जाता है। इन सबके समान पुण्य-फल केवल गोवर्धन पर्वत की यात्रा करने से प्राप्त हो जाता है। मैथिलेन्द्र ! जो भगवान श्रीकृष्ण में मन लगाकर निर्मल गोविन्द कुण्ड में स्नान करता है, वह भगवान श्रीकृष्ण में मन लगाकर निर्मल गोविन्द कुण्ड में स्नान करता है, भगवान श्रीकृष्ण का सारुप्य प्राप्त कर लेता है– इसमें संशय नहीं है। हमारे गोवर्धन पर्वत पर जो मानसी गंगा है, उनमें डुबकी लगाने की समानता करने वाले सहस्त्रों अश्वमेध यज्ञ तथा सैकड़ों राजसूय यज्ञ भी नहीं हैं। विप्रवर ! आपने साक्षात गिरिराज का दर्शन, स्पर्श तथ वहाँ स्नान किया है, अत: इस भूतल पर आपसे बढ़कर दूसरा कोई नहीं है। यदि आपको विश्वास न हो तो मेरी ओर देखिये। मैं बहुत बड़ा महापात की था, किंतु गोवर्धन की शिला का स्पर्श होने मात्र से मैंने भगवान श्रीकृष्ण का सारूप्य प्राप्त कर लिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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