गर्ग संहिता
गिरिराजखण्ड : अध्याय 6
वर-वरणकर्ता बोले- नन्दराज ! जिसके नेत्र नूतन विकसित कमल के समान शोभा पाते हैं तथा जो मुख में करोड़ों चन्द्रखमण्डालों की-सी कान्ति धारण करती है, उस अपनी पुत्री श्रीराधा को विवाह के योग्य जानकर वृषभानुवर ने सुन्दर वर की खोज करते हुए यह विचार किया है कि तुम्हारे पुत्र मदनमोहन श्रीकृष्ण दिव्य वर हैं। गोवर्धन पर्वत को उठाने में समर्थ, दिव्य भुजाओं से सम्पन्न तथा उद्भट वीर हैं। प्रभों ! वैश्य -प्रवर !! यह सब देख और सोच-विचारकर वृषभानुवन्दित वृषभानुवर ने हम सबको यहाँ भेजा है। आप वर की गोद भरने के लिये पहले कन्या पक्ष की ओर से यह मौक्तिक राशि ग्रहण कीजिये। फिर इधर से भी कन्या की गोद भरने के लिये पर्याप्त मौक्तिक राशि प्रदान कीजिये। यही हमारे कुल की प्रसिद्ध रीति है। श्रीनारदजी कहते हैं - राजन् ! उस उत्कृष्ट द्रव्य राशि को देखकर नन्दराज बडे़ विस्मित हुए, तो भी वे कुछ विचारकर यशोदा जी से 'उसके तुल्य रत्न-राशि है या नहीं' इस बात को पूछने के लिये वह सब सामान लेकर अन्त:पुर में गये। वहाँ उस समय नन्द और यशस्विनी यशोदा ने चिरकाल तक विचार किया, किंतु (अन्ततोगत्वा) इसी निष्कर्ष पर पहुँचे कि 'इस मोक्तिकराशि के बराबर दूसरी कोई द्रव्य राशि मेरे घर में नहीं है। आज लोगों में हमारी सारी लाज गयी। हम-लोगों की सब ओर हँसी उड़ाया जायगी। इस धन के बदले में हम दूसरा कौन-सा धन दें ? क्या करें ? श्रीकृष्ण के इस विवाह के निमित्त हमारे द्वारा क्या किया जाना चाहिये ? पहले तो जो कुछ वर के लिये आया है, उसे ग्रहण कर लेना चाहिये। पीछे अपने पास धन आने पर वधू के लिये उपहार भेजा जायगा।' ऐसा विचार करते हुए नन्द और यशोदाजी के पास भगवान अघमर्दन श्रीकृष्ण अलक्षितभाव से ही वहाँ आ गये। उन मौक्तिक हारों में से सौ हार उन्होंने घर से बाहर खेतों में ले जाकर, अपने हाथ से मोती का एक-एक दाना लेकर उन्होनें उसी भाँति सारे खेत में छींट दिया, जैसे किसान अपने खेतों में अनाज के दाने बिखेर देता है। तदनन्तर नन्द भी जब उन मुक्तामालाओं की गणना करने लगे, तब उनमें सौ मालाओं की कमी देखकर उनके मन में संदेह हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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