गर्ग संहिता
गिरिराज खण्ड : अध्याय 3
उसके बाद गोवर्धनधारी ने अपने सखाओं से कहा– ‘तुम लोग भी निकलो।’ तब वे बोले– ‘नहीं, हम लोग अपने बल से पर्वत को रोके हुए है, तम्हीं निकला जाओ।’ उन सबको इस तरह की बातें करते देख महामना गोवर्धनधारी श्रीहरि ने पर्वत का आधा भार उन-पर डाल दिया। बेचारे निर्बल गोप-बालक उस भार से दबकर गिर पड़े। तब उन सबको उठाकर श्रीकृष्ण ने उनके देखते-देखते पर्वत को पहले की ही भाँति लीला-पूर्वक रख दिया। नरेश्वर ! उस समय प्रमुख गोपियों और प्रधान-प्रधान गोपों ने नन्दनन्दन का गन्ध और अक्षत आदि से पूजन करके उन्हें दही-दूध का भोग अर्पित किया और उनको परमात्मा जानकर सबने उनके चरणों में प्रणाम किया। राजन् ! नन्द, यशोदा, रोहिणी, बलराम तथा सन्नन्द आदि वृद्धि गोपों ने श्रीकृष्ण को हृदय से लगाकर धन का दान किया और दया से द्रवित हो, उन्हें शुभाशीर्वाद प्रदान किये। तदनन्तर उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा करके, समस्त वज्रवासी सफल-मनोरथ हो नन्दनन्दन के समीप गाने, बजाने और नाचने लगे तथा उन श्रीहरि को आगे करके अपने घर को लौटे। उसी समय हर्ष से भरे हुए देवता वहाँ नन्दन-वन के सुन्दर-सुन्दर फूलों की वर्षा करने लगे तथा आकाश में खड़े हुए प्रधान-प्रधान गन्रध्व और सिद्धों के समुदाय गोवर्धनधारी के यश गाने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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