गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 4
वहाँ स्वच्छ जल वाली श्रेष्ठ नदी ‘यमुना’ भी लहराती है। उसके दोनों तट रत्नों से बँधे हैं। हंस और कमल आदि से वह सदा व्याप्त रहती है। वहाँ विविध रास-रंग से उन्मत्त गोपियों का समुदाय शोभा पाता है। उसी गोपी समुदाय के मध्य भाग में किशोर वय से सुशोभित भगवान श्रीकृष्ण विराजते हैं। उन श्रुतियों को इस प्रकार अपना लोक दिखाकर भगवान बोले-‘कहो, तुम्हारे लिये अब क्या करूँ ? तुमने मेरा यह लोक तो देख ही लिया, इससे उत्तम दूसरा कोई वर नहीं है’। श्रुतियों ने कहा- प्रभो ! आपके करोड़ों कामदेवों के समान मनोहर श्रीविग्रह को देखकर हममें कामिनी-भाव आ गया है और हमें आपसे मिलने की उत्कट इच्छा हो रही है! हम विरह ताप संतप्त हैं-इसमें सन्देह नहीं है। अत: आपके लोक में रहने वाली गोपियाँ आपका संग पाने के लिये जैसे आपकी सेवा करती हैं, हमारी भी वैसी ही अभिलाषा है। श्रीहरि बोले- श्रुतियों ! तुम लोगों का यह मनोरथ दुर्लभ एवं दुर्घट है; फिर भी मैं इसका भलीभाँति अनुमोदन कर चुका हूँ, अत: वह सत्य होकर रहेगा। आगे होने वाली सृष्टि में जब ब्रह्मा जगत की रचना में संलग्न होंगे, उस समय सारस्वत कल्प बीतने पर तुम सभी श्रुतियाँ व्रज में गोपियाँ होओगी। भूमण्डल पर भारतवर्ष में मेरे माथुर मण्डसल के अंतर्गत वृन्दावन में रास मण्ड ल के भीतर मैं तुम्हारा प्रियतम बनूँगा। तुम्हारा मेरे प्रति सुदृढ़ प्रेम होगा, जो सब प्रेमों से बढ़कर है। तब तुम सब श्रुतियाँ मुझे पाकर सफल-मनोरथ होओगी। श्रीभगवान कहते हैं- ब्रह्माजी ! पूर्व कल्प मैंने वर दे दिया है, उसी के प्रभाव से वे श्रुतियाँ व्रज में गोपियाँ होंगी। अब अन्य गोपियों के लक्षण सुनो। त्रेतायुग में देवताओं की रक्षा और राक्षसों का संहार करने के लिये मेरे स्वरूपभूत महापराक्रमी श्रीरामचन्द्रजी अवतीर्ण हुए थे। कमल लोचन श्रीराम ने सीता के स्वयंवर में जाकर धनुष तोड़ा और उन जनकनन्दिनी श्रीसीताजी के साथ विवाह किया। ब्रह्माजी ! उस अवसर पर जनकपुर की स्त्रियाँ श्रीराम को देखकर प्रेमविह्वल हो गयीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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