गर्ग संहिता
वृन्दावन खण्ड : अध्याय 24
यों कहने हुए मन के समान गतिशील आसुरिमुनि वैकुण्ठधाम में गये; किंतु वहाँ भी लक्ष्मी के साथ निवास करने वाले भगवान नारायण का दर्शन उन्हें नहीं हुआ। नरेश्वर ! वहाँ के भक्तों में भी आसुरि मुनि ने भगवान को नहीं देखा। तब वे योगीन्द्र मुनीश्वर गोलोक में गये; परंतु वहाँ के वृन्दावनीय निकुंज में भी परात्पर श्रीकृष्ण का दर्शन उन्हें नहीं हुआ। तब मुनि का चित्त खिन्न हो गया और वे श्रीकृष्ण-विरह से अत्यंत व्याकुल हो गये। वहाँ उन्होंने पार्षदों से पूछा- ‘भगवान यहाँ से कहाँ गये हैं ?’ तब वहाँ रहने वाले पार्षद गोपों ने उनसे कहा-‘वामनावतार के ब्रह्माण्ड में, जहाँ कभी पृश्रिगर्भ अवतार हुआ था, वहाँ साक्षात भगवान पधारे हैं।’ उनके यों कहने पर महामुनि आसुरि वहाँ से ब्रह्माण्ड में आये। श्रीहरि का दर्शन न होने से तीव्र गति से चलते हुए मुनि कैलास पर्वत पर गये। वहाँ महादेव जी श्रीकृष्ण के ध्यान में तत्पर होकर बैठे थे। उन्हें नमस्कार करके रात्रि में खिन्न-चित्त हुए महामुनि ने पूछा । आसुरि बोले-भगवन! मैंने सारा ब्रह्माण्ड इधर-उधर छान डाला, भगवद्दर्शन की इच्छा से वैकुण्ठ से लेकर गोलोक तक का चक्कर लगा आया, किंतु कहीं भी देवाधिदेव का दर्शन मुझे नहीं हुआ। सर्वज्ञशिरोमणि! बताइये, इस समय भगवान कहाँ हैं ? श्रीमहादेव जी बोले- आसुरे ! तुम धन्य हो। ब्रह्मन ! तुम श्रीकृष्ण के निष्काम भक्त हो। महामुने! मैं जानता हूँ, तुमने श्रीकृष्ण दर्शन की लालसा से महान क्लेश उठाया है। क्षीर सागर में रहने वाले हंस मुनि बड़े कष्ट में पड़ गये थे। उन्हें उस क्लेश से मुक्त करने के लिये जो बड़ी उतावली के साथ वहाँ गये थे, वे ही भगवान रसिकशेखर साक्षात श्रीकृष्ण अभी-अभी वृन्दावन में आकर सखियों के साथ रास-क्रीड़ा कर रहे हैं। मुने! आज उन देवेश्वर ने अपनी माया से छ: महीने-बराबर बड़ी रात बनायी है। मैं उसी रासोत्सव का दर्शन करने के लिये वहाँ जाऊँगा। तुम भी शीघ्र ही चलो, जिससे तुम्हारा मनोरथ पूर्ण हो जाय । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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