गर्ग संहिता
गोलोक खण्ड : अध्याय 3
श्रीराधिकाजी ने कहा- आप पृथ्वी का भार उतारने के लिये भूमण्डल पर अवश्य पधारें; परंतु मेरी एक प्रतिज्ञा है, उसे भी सुन लें- प्राणनाथ ! आपके चले जाने पर एक क्षण भी मैं यहाँ जीवन धारण नहीं कर सकूँगी। यदि आप मेरी इस प्रतिज्ञा पर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो मैं दुबारा भी कह रही हूँ। अब मेरे प्राण अधर तक पहुँचने को अत्यंत विह्वल हैं। ये इस शरीर से वैसे ही उड़ जायँगे, जैसे कपूर के धूलिकण। श्रीभगवान बोले- राधिके ! तुम विषाद मत करो। मैं तुम्हारे साथ चलूँगा और पृथ्वी का भार दूर करूँगा। मेरे द्वारा तुम्हारी बात अवश्य पूर्ण होगी। श्रीराधिकाजी ने कहा- (परंतु) प्रभो ! जहाँ वृन्दावन नहीं है, यमुना नदी नहीं है और गोवर्धन पर्वत भी नहीं है, वहाँ मेरे मन को सुख नहीं मिलता। नारदजी कहते हैं- (श्रीराधिकाजी के इस प्रकार कहने पर) भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने अपने धाम से चौरासी कोस भूमि, गोवर्धन पर्वत एवं यमुना नदी को भूतल पर भेजा। उस समय सम्पूर्ण देवताओं के साथ ब्रह्माजी ने परिपूर्णतम भगवान श्रीकृष्ण को बार-बार प्रणाम करके कहा। श्रीब्रह्माजी ने कहा- भगवन ! मेरे लिये कौन स्थान होगा ? आप कहाँ पधारेंगे ? तथा ये सम्पूर्ण देवता किन गृहों में रहेंगे और किन-किन नामों से इनकी प्रसिद्धि होगी? श्रीभगवान ने कहा- मैं स्वयं वसुदेव और देवकी के यहाँ प्रकट होऊँगा। मेरे कला स्वरूप ये ‘शेष’ रोहिणी के गर्भ से जन्म लेंगे- इसमें संशय नहीं है। साक्षात ‘लक्ष्मी’ राजा भीष्म के घर पुत्री रूप से उत्पन्न होंगी। इनका नाम ‘रुक्मणी’ होगा और ‘पार्वती’ ‘जाम्बवती’ के नाम से प्रकट होंगी। यज्ञ पुरुष की पत्नि ‘दक्षिणा देवी’ वहाँ ‘लक्ष्मणा’ नाम धारण करेंगी। यहाँ जो ‘विरजा’ नाम की नदी है, वही ‘कालिन्दी’ नाम से विख्यात होगी। भगवती ‘लज्जा’ का नाम ‘भ्रदा’ होगा। समस्त पापों का प्रशमन करने वाली ‘गंगा’ ‘मित्रविन्दा’ नाम धारण करेगी। जो इस समय ‘कामदेव’ हैं, वे ही रुक्मणी के गर्भ से ‘प्रद्युम्न’ रूप में उत्पन्न होंगे। प्रद्युम्न के घर तुम्हारा अवतार होगा। उस समय तुम्हें ‘अनिरूद्ध’ कहा जायेगा, इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है। ये ‘वसु’ जो ‘द्रोण’ के नाम से प्रसिद्ध हैं, व्रज में ‘नन्द’ होंगे और स्वयं इनकी प्राणप्रिया ‘धरा देवी’ ‘यशोदा’ नाम धारण करेंगी। ‘सुचन्द्र’ ‘वृषभानु’ बनेंगे तथा इनकी सहधर्मिणी ‘कलावती’ धराधाम पर ‘कीर्ति’ के नाम से प्रसिद्ध होंगी। फिर उन्हीं के यहाँ इन श्रीराधिकाजी का प्राकट्य होगा। मैं व्रजमण्डल में गोपियों के साथ सदा रासविहार करूँगा। इस प्रकार श्रीगर्ग संहिता में गोलोक खण्डा के अंतर्गत श्रीनारद बहुलाश्व संवाद में ‘भूतल पर अवतीर्ण होने के उद्योग का वर्णन’ नामक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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