गरु बिनु ऐसी कौन करै -सूरदास

सूरसागर

षष्ठ स्कन्ध

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राग सारंग


गुरु बिनु ऐसी कौन करै!
माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र घरै।
भवसागर तै बूड़त राखे, दीपक हाथ धरे।
सूर स्याम गुरु ऐसो समरथ, छिन मैं लै उधफै।।6।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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