गरुड़ध्वज (रथ)

Disamb2.jpg गरुड़ध्वज एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- गरुड़ध्वज (बहुविकल्पी)

गरुड़ध्वज भगवान श्रीकृष्ण के रथ का नाम था। हिन्दू धार्मिक ग्रंथ 'श्रीमद्भागवत महापुराण' में इस रथ का उल्लेख मिलता है।

  • 'श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध'[1] में श्रीकृष्ण का पांडवों के 'राजसूय यज्ञ' में पधारने का वर्णन मिलता है। यहाँ एक स्थान पर उल्लेख हुआ है कि श्रीकृष्ण ने वसुदेव तथा गुरुजनों आदि से अनुमति लेकर दारुक, जैत्र आदि सेवकों को पांडवों के राजसूय यज्ञ में जाने के लिए तैयारी करने के लिए आज्ञा दी। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने यदुराज उग्रसेन और बलराम जी से आज्ञा लेकर बाल-बच्चों के साथ रानियों और उनके सब सामानों को आगे चला दिया और फिर दारुक के लाये हुए गरुड़ध्वज रथ पर स्वयं सवार हुए।[2]
  • रुक्मिणी विवाह के संदर्भ में भी गरुड़ध्वज रथ का उल्लेख मिलता है। स्वयंवर में रुक्मिणी का इतना सौन्दर्य था कि सभी की दृष्टि वहीं थी। केवल यादव सैनिक सावधान थे और अपने निर्दिष्ट स्थल पर प्रतिपक्षियों पर दृष्टि लगाये थे। कुण्डिनपुर के सैनिक सावधान थे, पर शान्त खड़े थे। जरासन्ध और उसके साथियों तथा सैनिकों की दृष्टि राजकन्या पर लगी थी। 'देवमाया के समान राजकन्या का- अकल्पित लोकोत्तर सौन्दर्य था।' कब उनके हाथ से शस्त्र छूट गिरे, कब वे स्वयं अश्व या गज से पृथ्वी पर या रथ से उसके भीतर गिर पड़े मूर्च्छित होकर, उन्हें पता नहीं लगा।
  • 'कृष्ण कहाँ हैं? कहाँ है उनका गरुड़ध्वज रथ ?' राजकन्या रुक्मिणी के प्यासे लोचन तो राजाओं के समूह में अपने आराध्य श्रीकृष्ण को ढूँढ़ रहे थे। सहसा उसकी दृष्टि पड़ गयी एक ओर से बढ़े आते उस रथ पर और वह लज्जा से नतनयना, नतमुखी मन्दमन्द गति से अपने राजसदन से आये राजकीय रथ की ओर बढ़ चली। उसे अब कहाँ कुछ देखना था। राजकन्या अपने रथ के समीप पहुँच गयीं। वे उस रथ पर चढ़ने ही जा रही थीं कि आँधी के समान वेग से गरुड़ध्वज रथ आया। क्षणभर को रुका। तनिक झुककर श्रीकृष्णचन्द्र ने राजकुमारी को उठाकर अपने रथ में वामपार्श्व में बैठा दिया और रथ के अश्व पूरे वेग से दौड़ चले।[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अध्याय 71 श्लोक 1-13
  2. श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 71 श्लोक 1-13
  3. श्री द्वारिकाधीश -सुदर्शन सिंह चक्र पृ.19

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