गगन उठी घटा कारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौड़ मलार


गगन उठी घटा कारी, तामैं बग-पंगति अति न्यारी।
सुरधनु की छवि रुचिर देखियत बरन बरन रंगधारी।।
बीच-बीच दामिनी कौंधति है, मानो चंचल नारी।
दुरि-दुरि जाति बहुरि फिर आवति, बिकल मदन कीजारी।।
बन बरहो चातक रटै द्रुम-द्रुम, प्रति-प्रति सघन संचारी।
सूर, स्याम-हित काम सुकोविद, निज कर कुटी सँवारी।।1188।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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