गंग-तरंग विलोकत नैन।
अतिहिं पुनीत विष्नु-पादोदक, महिमा निगम पढ़त गुनि चेन।
परम पवित्र, मुक्ति की दाता , भागीरथहिं भव्य बर दैन।
द्वादस बर्ष सेए निसिबासर, तब सँकर भाषी है लैन।
त्रिभुवन-हार सिगार भगवती, सलिल चराचर जाके ऐन।
सूरजदास विधाता कैं तप प्रगट भई संतनि सुख दैन।।12।।