खेलन चलौ बाल गोबिंद -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली



खेलन चलौ बाल गोबिंद।
सखा प्रिय द्वारै बुलावत, घोष-बालक-बृंद।
तृषित हैं सब दरस-कारन, चतुर चातक दास।
बरषि छबि नव वारिधर तन, हरहु लोचन-प्यास।
बिनय बचननि सुनि कृपानिधि, चले मनहर चाल।
ललित लघु-लघु चरन-कर, उर-बाहु-नैन बिसाल।
आजिर पद-प्रतिबिंब राजत, चलत उपमा-पुंज।
प्रति चरन मनु हेम बसुधा, देति आसन कंज।
सूर प्रभु की निरखि सोभा रहे सुर अवलोकि।
सरद चंद चकोर मानौ, रहे थकित बिलोकि।।218।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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