खेलत हरि ग्वालसंग फागुरंग भारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


खेलत हरि ग्वालसंग फागुरंग भारी।
इक मारत इक तारत, इक भाजत इक गाजत, इक धावत इक पावत, इक आवत मारी।।
इक हरषत इक लरखत, इक परखत घातहिं कौ, लोचननि गुलाल डारि, सोधै ढरकावैं।
इक फिरत संग संग, इक इक न्यारे बिहरत, डरत दाँव दीवे कौ, वै ज्यौ नहिं पावैं।।
इक गावत इक भावत, इक नाचत इक राँचत, इक कर मिरदंग तार, गतिजति उपजावै।
इक बीना इक किन्नरि, इक मुरली इक उपंग इक तुँवुर इक रबाब, भाँति सौ बजावै।।
इक पटह इक गोमुख, इक आउझ इक झल्लरि, इक अमृत कुंडली, इक डफ कर धारै।
'सूरज' प्रभु बल मोहन, संग सखा बहु गोहन, खेलत वृषभानु पौरि लिये जात टारै।।2888।।

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