खेलत स्याम, सखा लिए संग।
इक मारत, इक रोकत गेंदहिं, इक भागत करि नाना रंग।
मार परसपर करत आपु मैं, अति आनंद भए मन माहिं।
खेलत ही मैं स्याम सबनि कौं, जमुना-तट कैं लीन्हे जाहिं।
मारि भजत जो जाहि, ताहि सो मारत, लेत आपनौ दाउ।
सूर स्याम के गुन को जानै कहत और कछु और उपाउ।।533।।