खाली थे कर दिये तुरत मधु -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

बाल-माधुरी की झाँकियाँ

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राग भैरवी - ताल कहरवा


खाली थे कर दिये तुरत मधु दधि-माखन के सारे माट।
पता नहीं ये कितने थे सब, कैसे रचा अनोखा ठाट॥
खा-पीकर कुछ मटके फोड़े, होने दी न जरा आवाज।
धीरे-से पट खोल, सभी ये भागे निकल मनोहर साज॥
देखा-भाग रहे, मैं दौड़ी, झट जा पहुँची घर के द्वार।
तब तक दूर निकल, यह लगा चिढ़ाने मुझको, दे फटकार॥
दिखा-दिखाकर मुझे अँगूठा हँसा विचित्र हँसी यह चोर।
उड़ा रोष सब, रही देखती मैं अपलक हँस-मुख की ओर॥
गयी भूल मैं इसे पकड़ना, इसके जादू के वश हो।
तब तक सब चल दिये नाचते-हँसते, करते हो-हो-हो॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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