खरे करौ अलि जोग सवारौ। भक्ति विरोधी ज्ञान तुम्हारौ।।
कहा होत उपदेसनि तेरै। नैन सुबस नाही अलि मेरै।।
हरि पथ जोवै छिन छिन रोवै। कृष्नवियोगी निमिष न सोवै।।
नंदनँदन कौ देखै जीवै। जोगपंथ पानी नहिं पीवै।।
जब हरि आवै तब सचु पावै। मोहन मूरति कंठ लगावै।।
दुसह वचन अलि हमै न भावै। जोग कहा ओढै कि बिछावै।।