- सेनाओं के युद्ध भूमि में पहुँचने के पश्चात् भीष्म जी दुर्योधन के पूछने पर उसे कौरव सेना के रथी-अतिरथियों का परिचय देते हैं और अब भीष्म जी दुर्योधन को रथी, महारथी व अतिरथियों के विषय बताते हुए- शकुनि, बृहद्बल व जलसंध को रथी, अश्वत्थामा, सत्यवान व पौरवों को महारथी और वाह्लीक आदि को अतिरथी नियुक्त करते हैं, जिसका उल्लेख महाभारत उद्योग पर्व में रथातिरथसंख्यान पर्व के अंतर्गत अध्याय 167 में निम्न प्रकार हुआ है[1]-
विषय सूची
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन
भीष्म ने कहा- नरेश्वर! यह तुम्हारा मामा शकुनि भी एक रथी है। यह पाण्डवों से वैर बाँधकर युद्ध करेगा, इसमें संशय नहीं है। युद्ध में डटकर शत्रुओं का सामना करने वाले इस शकुनि की सेना दुर्धर्ष है। इसका वेग वायु के समान है तथा यह विविध आकार वाले अनेक आयुधों से विभूषित है। महाधनुर्धर द्रोणपुत्र अश्वत्थामा तो सभी धनुर्धरों से बढ़कर है। वह युद्ध में विचित्र ढंग से शत्रुओं का सामना करने वाला, सुदृढ तथा महारथी है। महाराज! गाण्डीवधारी अर्जुन की भाँति इसके धनुष से एक साथ छूटे हुए बहुत-से बाण भी परस्पर सटे हुए ही लक्ष्य तक पहुँचते हैं। रथियों में श्रेष्ठ इस वीर पुरुष के महत्त्व की गणना नहीं की जा सकती। यह महारथी चाहे तो तीनों लोकों को दग्ध कर सकता है। इसमें क्रोध है, तेज है और आश्रमवासी महर्षियों के योग्य तपस्या भी संचित है। इसकी बुद्धि उदार है। द्रोणाचार्य ने सम्पूर्ण दिव्यास्त्रों का ज्ञान देकर इस पर महान अनुग्रह किया है। किंतु भरतश्रेष्ठ! नृपशिरोमणे! इसमें एक ही बहुत बड़ा दोष है, जिससे मैं इसे न तो अतिरथी मानता हूँ और न रथी ही। इस ब्राह्मण को अपना जीवन बहुत प्रिय है, अत: यह सदा दीर्घायु बना रहना चाहता है यही इसका दोष है अन्यथा दोनों सेनाओं में इसके समान शक्तिशाली कोई नहीं है। यह एकमात्र रथ का सहारा लेकर देवताओं की सेना का भी संहार कर सकता है। इसका शरीर हष्ट-पुष्ट एवं विशाल है। यह अपनी ताली की आवाज से पर्वतों को भी विदीर्ण कर सकता है। इस वीर में असंख्य गुण हैं। यह प्रहार करने में कुशल और भयंकर तेज से सम्पन्न है; अत: दण्डधारी काल के समान असह्य होकर युद्धभूमि में विचरण करेगा। क्रोध में यह प्रलयकाल की अग्नि के समान जान पड़ता है। इसकी ग्रीवा सिंह के समान है। यह महातेजस्वी अश्वत्थामा महाभारत-युद्ध के शेषभाग का शमन करेगा।
अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य महान तेजस्वी हैं। ये बूढ़े होने पर भी नवयुवकों से अच्छे हैं। इस युद्ध में ये अपना महान पराक्रम प्रकट करेंगे, इसमें मुझे संशय नहीं है। समरभूमि में डटे हुए द्रोणाचार्य अग्नि के समान है। अस्त्रवेगरूपी वायु का सहारा पाकर ये उद्दीप्त होंगे और सेनारूपी घास-फूस तथा ईंधनों को पाकर प्रज्वलित हो उठेंगे। इस प्रकार ये प्रज्वलित होकर पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर की सेनाओं को जलाकर भस्म कर डालेंगे। ये नरश्रेष्ठ भरद्वाजनन्दन रथ यूथपतियों के समुदाय के भी यूथपति हैं। ये तुम्हारे हित के लिये तीव्र पराक्रम प्रकट करेंगे। सम्पूर्ण मूर्धाभिषिक्त राजाओं के ये आचार्य एवं वृद्ध गुरु हैं। ये सृंजयवंशी क्षत्रियों का विनाश कर डालेंगे; परंतु अर्जुन इन्हें बहुत प्रिय है। महाधनुर्धर द्रोणाचार्य का समुज्जवल आचार्यभाव अर्जुन के गुणों द्वारा जीत लिया गया है। उसका स्मरण करके ये अनायास ही महान कर्म करने वाले कुन्ती के पुत्र अर्जुन को कदापि नहीं मारेंगे। वीर! ये आचार्य द्रोण अर्जुन के गुणों का विस्तारपूर्वक उल्लेख करते हुए सदा उनकी प्रशंसा करते हैं और उन्हें पुत्र से भी अधिक प्रिय मानते हैं। प्रतापी द्रोणाचार्य एकमात्र रथ का ही आश्रय ले रणभूमि में एकत्र एवं एकीभूत हुए सम्पूर्ण देवताओं, गन्धर्वों और मनुष्यों को अपने दिव्यास्त्रों द्वारा नष्ट कर सकते हैं। राजन! तुम्हारी सेना में जो नृपश्रेष्ठ पौरव हैं, वे मेरे मत में रथियों में उदार महारथी हैं। ये विपक्ष के वीर रथियों को पीड़ा देने में समर्थ हैं। राजा पौरव अपनी विशाल सेना के द्वारा शत्रुवाहिनी को संतप्त करते हुए पांचालों को उसी प्रकार भस्म कर डालेंगे, जैसे आग घास-फूस को।
राजन! राजकुमार बृहद्बल भी एक रथी है। संसार में उनकी लंबी कीर्ति का विस्तार हुआ है। वे तुम्हारे शत्रुओं की सेना में काल के समान विचरेंगे।[1] राजेन्द्र! उनके सैनिक विचित्र कवच और अस्त्र-शस्त्र धारण करके तुम्हारे शत्रुओं का संहार करते हुए संग्राम भूमि में विचरण करेंगे। कर्ण का पुत्र वृषसेन तुम्हारे वैरियों की विशाल वाहिनी को भस्म कर डालेगा। राजन! शत्रुवीरों का संहार करने वाले मधुवंशी महातेजस्वी जलसंध तुम्हारी सेना में श्रेष्ठ रथी हैं। ये तुम्हारे लिये युद्ध में प्राण तक दे डालेंगे। महाबाहु जलसंध रथ अथवा पीठ पर बैठकर युद्ध करने में कुशल है। ये संग्राम में शत्रु सेना का संहार करते हुए लड़ेंगे। महाराज! नृपश्रेष्ठ! ये मेरे रथी ही हैं और इस महायुद्ध में तुम्हारे लिये अपनी सेना सहित प्राण त्याग करेंगे। राजन! ये समरांगण में महान पराक्रम प्रकट करते हुए विचित्र ढंग से युद्ध करने वाले हैं। ये तुम्हारे शत्रुओं के साथ निर्भय होकर युद्ध करेंगे। वाह्लीक अतिरथी वीर हैं। ये युद्ध से कभी पीछे नहीं हटते हैं। राजन! मैं समरभूमि में इन्हें यमराज के समान शूरवीर मानता हूँ। ये रणक्षेत्र में पहुँचकर किसी तरह पीछे पैर नहीं हटा सकते। राजन! ये वायु के समान वेग से रणभूमि में शत्रुओं को मारेंगे।
महराज! रथारूढ़ हो युद्ध में अद्भुत पराक्रम दिखाने और शत्रु पक्ष के रथियों को मार भगाने वाले तुम्हारे सेनापति सत्यवान भी महारथी हैं। युद्ध देखकर इनके मन में किसी प्रकार भी भय एवं दुख नहीं होता। ये रथ के मार्ग में खड़े हुए शत्रुओं पर हंसते-हंसते कूद पड़ते हैं। पुरुषश्रेष्ठ सत्यवान शत्रुओं पर महान पराक्रम दिखाते हैं। ये युद्ध में तुम्हारे लिये श्रेष्ठ पुरुषों के योग्य महान कर्म करेंगे। क्रूरकर्मा राक्षसराज अलम्बुष भी महारथी है। राजन! यह पहले के वैर को याद करके शत्रुओं का संहार करेगा। मायावी, वैरभाव को द्रढ़तापूर्वक सुरक्षित रखने वाला तथा समस्त सैनिकों में श्रेष्ठ रथी यह अलम्बुष संग्रामभूमि में निर्भय होकर विचरेगा। प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भगदत्त बड़े वीर और प्रतापी हैं। हाथ मे अंकुश लेकर हाथियों को काबू में रखने वाले वीरों में इनका सबसे ऊँचा स्थान है। ये रथ युद्ध में भी कुशल हैं। राजन! पहले इनके साथ गाण्डीवधारी अर्जुन का युद्ध हुआ था। उस संग्राम में दोनों अपनी-अपनी विजय चाहते हुए बहुत दिनों तक लड़ते रहे। गान्धारीकुमार! कुछ दिनों बाद भगदत्त ने अपने सखा इन्द्र का सम्मान करते हुए महात्मा पाण्डुनन्दन अर्जुन के साथ संधि कर ली थी। राजा भगदत्त हाथी की पीठ पर बैठकर युद्ध करने में अत्यन्त कुशल हैं। ये ऐरावत पर बैठे हुए देवराज इन्द्र के समान संग्राम में तुम्हारे शत्रुओं के साथ युद्ध करेंगे।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
सम्बंधित लेख
महाभारत उद्योग पर्व में उल्लेखित कथाएँ
सेनोद्योग पर्व
विराट की सभा में श्रीकृष्ण का भाषण
| विराट की सभा में बलराम का भाषण
| सात्यकि के वीरोचित उद्गार
| द्रुपद की सम्मति
| श्रीकृष्ण का द्वारका गमन
| विराट और द्रुपद के संदेश
| द्रुपद का पुरोहित को दौत्य कर्म के लिए अनुमति
| पुरोहित का हस्तिनापुर प्रस्थान
| श्रीकृष्ण का दुर्योधन और अर्जुन को सहायता देना
| शल्य का दुर्योधन के सत्कार से प्रसन्न होना
| इन्द्र द्वारा त्रिशिरा वध
| वृत्तासुर की उत्पत्ति
| वृत्तासुर और इन्द्र का युद्ध
| देवताओं का विष्णु जी की शरण में जाना
| इंद्र-वृत्तासुर संधि
| इन्द्र द्वारा वृत्तासुर का वध
| इंद्र का ब्रह्महत्या के भय से जल में छिपना
| नहुष का इंद्र के पद पर अभिषिक्त होना
| नहुष का काम-भोग में आसक्त होना
| इंद्राणी को बृहस्पति का आश्वासन
| देवता-नहुष संवाद
| बृहस्पति द्वारा इंद्राणी की रक्षा
| नहुष का इन्द्राणी को काल अवधि देना
| इंद्र का ब्रह्म हत्या से उद्धार
| शची द्वारा रात्रि देवी की उपासना
| उपश्रुति देवी की मदद से इंद्र-इंद्राणी की भेंट
| इंद्राणी के अनुरोध पर नहुष का ऋषियों को अपना वाहन बनाना
| बृहस्पति और अग्नि का संवाद
| बृहस्पति द्वारा अग्नि और इंद्र का स्तवन
| बृहस्पति एवं लोकपालों की इंद्र से वार्तालाप
| अगस्त्य का इन्द्र से नहुष के पतन का वृत्तांत बताना
| इंद्र का स्वर्ग में राज्य पालन
| शल्य का युधिष्ठिर आश्वासन देना
| युधिष्ठिर और दुर्योधन की सेनाओं का संक्षिप्त वर्णन
संजययान पर्व
द्रुपद के पुरोहित का कौरव सभा में भाषण
| भीष्म द्वारा पुरोहित का समर्थन एवं अर्जुन की प्रशंसा
| कर्ण के आक्षेपपूर्ण वचन
| धृतराष्ट्र द्वारा दूत को सम्मानित करके विदा करना
| धृतराष्ट्र का संजय से पाण्डवों की प्रतिभा का वर्णन
| धृतराष्ट्र का पाण्डवों को संदेश
| संजय का युधिष्ठिर से मिलकर कुशलक्षेम पूछना
| युधिष्ठिर का संजय से कौरव पक्ष का कुशलक्षेम पूछना
| संजय द्वारा युधिष्ठिर को धृतराष्ट्र का संदेश सुनाने की प्रतिज्ञा करना
| युधिष्ठिर का संजय को इंद्रप्रस्थ लौटाने की कहना
| संजय का युधिष्ठिर को युद्ध में दोष की संभावना बताना
| संजय को युधिष्ठिर का उत्तर
| संजय को श्रीकृष्ण का धृतराष्ट्र के लिए चेतावनी देना
| संजय की विदाई एवं युधिष्ठिर का संदेश
| युधिष्ठिर का कुरुवंशियों के प्रति संदेश
| अर्जुन द्वारा कौरवों के लिए संदेश
| संजय का धृतराष्ट्र के कार्य की निन्दा करना
प्रजागर पर्व
धृतराष्ट्र-विदुर संवाद
| धृतराष्ट्र के प्रति विदुर के नीतियुक्त वचन
| विदुर द्वारा सुधंवा-विरोचन विवाद का वर्णन
| विदुर का धृतराष्ट्र को धर्मोपदेश
| दत्तात्रेय एवं साध्य देवताओं का संवाद
| विदुर द्वारा धृतराष्ट्र को समझाना
| धृतराष्ट्र के प्रति विदुर का हितोपदेश
| विदुर के नीतियुक्त उपदेश
| धृतराष्ट्र के प्रति विदुर का नीतियुक्त उपदेश
| विदुर द्वारा धर्म की महत्ता का प्रतिपादन
| विदुर द्वारा चारों वर्णों के धर्म का सक्षिप्त वर्णन
सनत्सुजात पर्व
विदुर द्वारा सनत्सुजात से उपदेश देने के लिए प्रार्थना
| सनत्सुजात द्वारा धृतराष्ट्र के प्रश्नों का उत्तर
| ब्रह्मज्ञान में मौन, तप तथा त्याग आदि के लक्षण
| सनत्सुजात द्वारा ब्रह्मचर्य तथा ब्रह्म का निरुपण
| गुण दोषों के लक्षण एवं ब्रह्मविद्या का प्रतिपादन
| योगीजनों द्वारा परमात्मा के साक्षात्कार का प्रतिपादन
यानसंधि पर्व
संजय का कौरव सभा में आगमन
| संजय द्वारा कौरव सभा में अर्जुन का संदेश सुनाना
| भीष्म का दुर्योधन से कृष्ण और अर्जुन की महिमा का बखान
| भीष्म का कर्ण पर आक्षेप और द्रोणाचार्य द्वारा भीष्मकथन का अनुमोदन
| संजय द्वारा युधिष्ठिर के प्रधान सहायकों का वर्णन
| भीमसेन के पराक्रम से धृतराष्ट्र का विलाप
| धृतराष्ट्र द्वारा अर्जुन से प्राप्त होने वाले भय का वर्णन
| कौरव सभा में धृतराष्ट्र द्वारा शान्ति का प्रस्ताव
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र को उनके दोष बताना तथा सलाह देना
| दुर्योधन का धृतराष्ट्र से अपने उत्कर्ष और पांडवों के अपकर्ष का वर्णन
| संजय द्वारा अर्जुन के ध्वज एवं अश्वों का वर्णन
| संजय द्वारा युधिष्ठिर के अश्वों का वर्णन
| संजय द्वारा पांडवों की युद्ध विषयक तैयारी का वर्णन और धृतराष्ट्र का विलाप
| दुर्योधन द्वारा अपनी प्रबलता का प्रतिपादन और धृतराष्ट्र का उस पर अविश्वास
| संजय द्वारा धृष्टद्युम्न की शक्ति एवं संदेश का कथन
| धृतराष्ट्र का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| दुर्योधन का अहंकारपूर्वक पांडवों से युद्ध का निश्चय
| धृतराष्ट्र का अन्य योद्धाओं को युद्ध से भय दिखाना
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र को कृष्ण और अर्जुन के संदेश सुनाना
| धृतराष्ट्र द्वारा कौरव-पांडव शक्ति का तुलनात्मक वर्णन
| दुर्योधन की आत्मप्रशंसा
| कर्ण की आत्मप्रशंसा एवं भीष्म द्वारा उस पर आक्षेप
| कर्ण द्वारा कौरव सभा त्यागकर जाना
| दुर्योधन द्वारा अपने पक्ष की प्रबलता का वर्णन
| विदुर का दम की महिमा बताना
| विदुर का धृतराष्ट्र से कौटुम्बिक कलह से हानि बताना
| धृतराष्ट्र का दुर्योधन को समझाना
| संजय का धृतराष्ट्र को अर्जुन का संदेश सुनाना
| धृतराष्ट्र के पास व्यास और गांधारी का आगमन
| संजय का धृतराष्ट्र को कृष्ण की महिमा बताना
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र को कृष्णप्राप्ति एवं तत्त्वज्ञान का साधन बताना
| कृष्ण के विभिन्न नामों की व्युत्पत्तियों का कथन
| धृतराष्ट्र द्वारा भगवद्गुणगान
भगवद्यान पर्व
युधिष्ठिर का कृष्ण से अपना अभिप्राय निवेदन करना
| कृष्ण का शांतिदूत बनकर कौरव सभा में जाने का निश्चय
| कृष्ण का युधिष्ठिर को युद्ध के लिए प्रोत्साहन देना
| भीमसेन का शांति विषयक प्रस्ताव
| कृष्ण द्वारा भीमसेन को उत्तेजित करना
| कृष्ण को भीमसेन का उत्तर
| कृष्ण द्वारा भीमसेन को आश्वासन देना
| अर्जुन का कथन
| कृष्ण का अर्जुन को उत्तर देना
| नकुल का निवेदन
| सहदेव तथा सात्यकि की युद्ध हेतु सम्मति
| द्रौपदी का कृष्ण को अपना दु:ख सुनाना
| कृष्ण द्वारा द्रौपदी को आश्वासन
| कृष्ण का हस्तिनापुर को प्रस्थान
| युधिष्ठिर का कुन्ती एवं कौरवों के लिए संदेश
| कृष्ण को मार्ग में दिव्य महर्षियों का दर्शन
| वैशम्पायन द्वारा मार्ग के शुभाशुभ शकुनों का वर्णन
| कृष्ण का मार्ग में लोगों द्वारा आदर-सत्कार
| कृष्ण का वृकस्थल पहुँचकर विश्राम करना
| दुर्योधन का कृष्ण के स्वागत-सत्कार हेतु मार्ग में विश्रामस्थान बनवाना
| धृतराष्ट्र का कृष्ण की अगवानी करके उन्हें भेंट देने का विचार
| विदुर का धृतराष्ट्र को कृष्णआज्ञा का पालन करने के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृष्ण के विषय में अपने विचार कहना
| दुर्योधन की कुमन्त्रणा से भीष्म का कुपित होना
| हस्तिनापुर में कृष्ण का स्वागत
| धृतराष्ट्र एवं विदुर के यहाँ कृष्ण का आतिथ्य
| कुन्ती का कृष्ण से अपने दु:खों का स्मरण करके विलाप करना
| कृष्ण द्वारा कुन्ती को आश्वासन देना
| कृष्ण का दुर्योधन के भोजन निमंत्रण को अस्वीकार करना
| कृष्ण का विदुर के घर पर भोजन करना
| विदुर का कृष्ण को कौरवसभा में जाने का अनौचित्य बतलाना
| कृष्ण का कौरव-पांडव संधि के प्रयत्न का औचित्य बताना
| कृष्ण का कौरवसभा में प्रवेश
| कौरवसभा में कृष्ण का स्वागत और उनके द्वारा आसनग्रहण
| कौरवसभा में कृष्ण का प्रभावशाली भाषण
| परशुराम द्वारा नर-नारायणरूप कृष्ण-अर्जुन का महत्त्व वर्णन
| कण्व मुनि का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| कण्व मुनि द्वारा मातलि का उपाख्यान आरम्भ करना
| मातलि का नारद संग वरुणलोक भ्रमण एवं अनेक आश्चर्यजनक वस्तुएँ देखना
| नारद द्वारा पाताललोक का प्रदर्शन
| नारद द्वारा हिरण्यपुर का दिग्दर्शन और वर्णन
| नारद द्वारा गरुड़लोक तथा गरुड़ की संतानों का वर्णन
| नारद द्वारा सुरभि तथा उसकी संतानों का वर्णन
| नारद द्वारा नागलोक के नागों का वर्णन
| मातलि का नागकुमार सुमुख के साथ पुत्री के विवाह का निश्चय
| नारद का नागराज आर्यक से सुमुख तथा मातलि कन्या के विवाह का प्रस्ताव
| विष्णु द्वारा सुमुख को दीर्घायु देना तथा सुमुख-गुणकेशी विवाह
| विष्णु द्वारा गरुड़ का गर्वभंजन
| दुर्योधन द्वारा कण्व मुनि के उपदेश की अवहेलना
| नारद का दुर्योधन से धर्मराज द्वारा विश्वामित्र की परीक्षा लेने का वर्णन
| गालव द्वारा विश्वामित्र से गुरुदक्षिणा माँगने के लिए हठ का वर्णन
| गालव की चिन्ता और गरुड़ द्वारा उन्हें आश्वासन देना
| गरुड़ का गालव से पूर्व दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ का गालव से दक्षिण दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ का गालव से पश्चिम दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ का गालव से उत्तर दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ पर सवार गालव का उनके वेग से व्याकुल होना
| गरुड़ और गालव की तपस्विनी शाण्डिली से भेंट
| गरुड़ और गालव का ययाति के यहाँ आगमन
| ययाति द्वारा गालव को अपनी कन्या देना
| हर्यश्व का ययातिकन्या से वसुमना नामक पुत्र उत्पन्न करना
| दिवोदास का ययातिकन्या से प्रतर्दन नामक पुत्र उत्पन्न करना
| उशीनर का ययातिकन्या से शिबि नामक पुत्र उत्पन्न करना
| गालव द्वारा ययातिकन्या को विश्वामित्र की सेवा में देना
| ययातिकन्या माधवी का वन में जाकर तपस्या करना
| ययाति का स्वर्ग में सुखभोग तथा मोहवश तेजोहीन होना
| ययाति का स्वर्गलोक से पतन
| ययाति के दौहित्रों तथा गालव द्वारा उन्हें पुन: स्वर्गलोक भेजने का प्रयास
| ययाति का फिर से स्वर्गारोहण
| स्वर्गलोक में ययाति का स्वागत
| नारद द्वारा दुर्योधन को समझाना
| धृतराष्ट्र के अनुरोध से कृष्ण का दुर्योधन को समझाना
| भीष्म, द्रोण, विदुर और धृतराष्ट्र का दुर्योधन को समझाना
| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को पुन: समझाना
| दुर्योधन द्वारा पांडवों को राज्य न देने का निश्चय
| कृष्ण का दुर्योधन को फटकारना
| कृष्ण द्वारा धृतराष्ट्र को दुर्योधन आदि को कैद करने की सलाह
| गांधारी का दुर्योधन को समझाना
| सात्यकि द्वारा दुर्योधन के षड़यंत्र का भंडाफोड़
| धृतराष्ट्र और विदुर का दुर्योधन को पुन: समझाना
| कृष्ण का विश्वरूप
| कृष्ण का कौरवसभा से प्रस्थान
| कुंती का पांडवों के लिये संदेश
| कुंती द्वारा विदुलोपाख्यान का प्रारम्भ
| विदुला का पुत्र को युद्ध हेतु उत्साहित करना
| विदुला और उसके पुत्र का संवाद
| विदुला द्वारा कार्य में सफलता प्राप्ति और शत्रुवशीकरण उपायों का निर्देश
| विदुला के उपदेश से उसके पुत्र का युद्ध हेतु उद्यत होना
| कुंती का संदेश तथा कृष्ण का उनसे विदा लेना
| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को समझाना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को पुन: संधि के लिए समझाना
| कृष्ण का कर्ण को पांडवपक्ष में आने के लिए समझाना
| कर्ण का दुर्योधन के पक्ष में रहने का निश्चित विचार
| कर्ण द्वारा कृष्ण से समरयज्ञ के रूपक का वर्णन
| कृष्ण का कर्ण से पांडवपक्ष की निश्चित विजय का प्रतिपादन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से पांडवों की विजय और कौरवों की पराजय दर्शाने वाले लक्षणों का वर्णन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से अपने स्वप्न का वर्णन
| कुंती का कर्ण के पास जाना
| कुंती का कर्ण से पांडवपक्ष में मिल जाने का अनुरोध
| कर्ण की अर्जुन को छोड़कर शेष पांडवों को न मारने की प्रतिज्ञा
| कृष्ण का युधिष्ठिर से कौरवसभा में व्यक्त किये भीष्म के वचन सुनाना
| कृष्ण द्वारा द्रोणाचार्य, विदुर तथा गांधारी के महत्त्वपूर्ण वचनों का वर्णन
| दुर्योधन के प्रति धृतराष्ट्र के युक्तिसंगत वचनों का वर्णन
| कृष्ण का कौरवों के प्रति दण्ड के प्रयोग पर जोर देना
सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव
| पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश
| कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण
| दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश
| कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना
| युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन
| दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक
| दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक
| युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक
| बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान
| रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन
| धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना
| पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना
| पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर
| पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना
| धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति
रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन
| कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद
| भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन
| पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा
| पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन
| भीष्म का शिखण्डी और पांडवों का वध न करने का कथन
अम्बोपाख्यानपर्व
भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का अपहरण
| अम्बा का भीष्म से शाल्वराज के प्रति अनुराग प्रकट करना
| अम्बा का शाल्व द्वारा परित्याग
| अम्बा और शैखावत्य संवाद
| होत्रवाहन तथा अकृतव्रण का आगमन और उनका अम्बा से वार्तालाप
| अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप
| अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह
| परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप
| परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना
| परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना
| परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध
| भीष्म और परशुराम का युद्ध
| भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति
| भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
| भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति
| अम्बा की कठोर तपस्या
| अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश
| अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण
| शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप
| हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना
| द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन
| शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना
| शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति
| स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप
| भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय
| भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन
| अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना
| कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान
| पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज