कौन सुनै यह बात हमारी ?
समरथ और देखौं तुम बिनु कासौं बिथा कहौं बनवारी ?
तुम अविगत, अनाथ कै स्वामी, दीनन्दयाल, निंकुज-बिहारी।
सदा सहाइ करी दासनि की, जो उर धरी सौइ प्रतिपारी।
अब किहिं सरन जाउँ जादौपति, राखि लेहु बलि त्रास निवारी।
सूरदास चरननि की बलि-बलि, कौन खता तैं कृपा बिसारी ?।।160।।
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