कोई कछू कहे मन लागा -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अपना मार्ग


कोई कछू कहे मन लागा ।। टेक ।।
ऐसी प्रीत लगी मन मोहन ज्‍यूँ सोंना में सोहागा ।
जनम जनम का सोया मनूवाँ, सतगुर सब्‍द सुण जागा ।
मात पिता सुत कुटम कबीला, टूट गयो ज्‍यूँ तागा ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, भाग हमारा जागा ।।26।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कछु = कुछ भी। ज्यूँ ...सुहागा = जिस प्रकार सोने वा सुहागा का उचित मेल होता है। जागा = वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर लिया। कबीला = कबीला, स्त्री, जोरू। टूट...जाता = अलग वा विराने हो गये। कुटम = कुटुम्ब, परिवार। सब्द = शब्द, भेद भरे उपदेश।

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