कैसैं पुरी जरी कपिराइ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
कैसैं पुरी जरी कपिराइ।
बडे़ दैत्य कैसैं कै मारे, अंतर आप बचाइ?
प्रगट कपाट विकट दीन्हें हे, बहु जोधा रखवारे।
तैंतिस कोटि देव बस कीन्हें , ते तुमसौं क्यौं हारे?
तीनि लोक डर जाकैं काँपै, तुम हनुमान न पेखे?
तुम्हरैं क्रोध, स्त्राप सीता कैं, दूरि जरत हम देखे।
हौं जगदीस, कहा कहौं तुमसौं, तुम बल-तेज मुरारी।
सूरदास सुनौ सब संतौ अविगत की गति न्यारी॥105॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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