कैसैं पुरी जरी कपिराइ।
बडे़ दैत्य कैसैं कै मारे, अंतर आप बचाइ?
प्रगट कपाट विकट दीन्हें हे, बहु जोधा रखवारे।
तैंतिस कोटि देव बस कीन्हें , ते तुमसौं क्यौं हारे?
तीनि लोक डर जाकैं काँपै, तुम हनुमान न पेखे?
तुम्हरैं क्रोध, स्त्राप सीता कैं, दूरि जरत हम देखे।
हौं जगदीस, कहा कहौं तुमसौं, तुम बल-तेज मुरारी।
सूरदास सुनौ सब संतौ अविगत की गति न्यारी॥105॥