कैसे कै भरिहै री दिन सावन के -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


कैसे कै भरिहै री दिन सावन के।
हरित भूमि भरे सलिल सरोवर, मिटे मग मोहन आवन के।।
दादुर मोर सोर चातक पिक, सूही, निसा सिरावन के।
गरज चहूँ घन घुमड़ि दामिनी, मदन धनुष धरि धावन के।।
पहिरि कुसुम सारी कंचुकि तन, झुंडनि झुंडनि गावन के।
'सूरदास' प्रभु दुसह क्यौ, सोक त्रिगुन सिर रावन के।। 3316।।

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