श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण और अर्जुन की मैत्री
जिस समय उत्तरा के गर्भस्थ पीरक्षित को अश्वत्थामा ने मार दिया था और उत्तरा भगवान के सामने रोने लगी थी, उस समय विशुद्धात्मा भगवान ने सारे जगत को सुनाते हुए कहा था- न ब्रवीम्युत्तरे मिथ्या सत्यमेतद्भविष्यति । हे उत्तरा ! मैं कभी झूठ नहीं बोलता, मेरा कहना सत्य ही होगा। सब देहधारी देखें मैं अभी इस बालको को जीवित करता हूँ। जैसे मैंने कभी हंसी-मजाक में भी झूठ नहीं बोला है, जैसे युद्ध में कभी पीछे नहीं लौटा हूं, वैसे ही इस बालक को जिलाने में भी पीछे नहीं हटूंगा। मुझे यदि धर्म और विशेषकर ब्राह्मण प्यारे हैं तो जन्मते ही मरा हुआ अभिमन्यु का बालक जीवित हो जाये। यदि कभी भी मैंने जाने में अर्जुन से विरोध नहीं किया है, यदि यह सत्य है तो यह मृत बालक जी उठे। सत्य और धर्म मेरे अंदर नित्य ही प्रतिष्ठित रहते हैं, इनके बल से यह अभिमन्यु का मरा बालक जीवित हो जाय। यदि कंस और केशी को मैंने धर्मानुसार मारा है (द्वेष से नहीं) तो यह बालक जी उठे। भगवान के ऐसा कहते ही बालक जी उठा ।इस प्रसंग में भगवान के सत्य, वीरत्व, धर्म, ब्रह्मण्यता, रागद्वेषहीनता आदि की घोषता तो महत्व की हैं ही, परन्तु अर्जुन के अविरोध की बात भगवान का अर्जुन के प्रति कितना असीम प्रेम था, इसको सूचित करती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अश्वमेधपर्व 69। 18-23
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