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विश्व में गति ही प्रधान है। यह गति नियमबद्ध होती है। इसी नियमबद्ध गति से विश्व का प्रादुर्भाव और इसी में विश्व का विलय है। इस नियमबद्ध गति को हम भगवान का रास कह सकते हैं। जो इसका रहस्य समझता हुआ इसमें प्रवृत्त होता है, वही इसके सच्चे आनन्द का अनुभव कर सकता है। भगवान अपने मधुर आवहान से प्रत्येक व्यक्ति को इस रास के लिये आमन्त्रित करते हैं। जो दृढ़ निश्चय के साथ अपना सम्पूर्ण अभिमान दूर करके इस ओर अग्रसर होता है, वह परम शान्ति और परम आनन्द प्राप्त कर लेता है। दूसरे लोग अपनी-अपनी शक्ति और सामर्थ्यर भर आगे बढ़कर रह जाते हैं।
योग की दृष्टि से भी रास का रहस्य इसी प्रकार समझा जा सकता है। अनाहत-नाद ही भगवान श्रीकृष्ण की वंशीध्वनि है, अनेक नाडियाँ ही गोपिकाएँ हैं, कुल-कुण्डलिनी ही श्रीराधा है और मस्तिष्क का सहस्रदल कमल ही वह सुरम्य वृन्दावन है, जहाँ आत्मा और परमात्मा का सुखमय सम्मिलन होता है तथा जहाँ पहूंचकर ईश्वरीय विभूति के साथ जीवात्मा की सम्पूर्ण शक्तियाँ सुरम्य रास रचती हुई नृत्य किया करती हैं। रास पश्चाध्यायी समाधि-भाषा में लिखी गयी है। इसमें बतायी हुई रासलीला का रहस्य आप जिस दृष्टि से समझना चाहें, उसी दृष्टि से समझकर सुख प्राप्त कर सकते हैं।
जो निरे साहित्यक और श्रृंगार-रस-प्रिय हैं, वे भी इसमें अपने सन्तोष के लिये पर्याप्त सामग्री पा सकते हैं। परन्तु इसी एक भावना को प्राधान्य देकर कुछ कवियोंने जो इसके रहस्य को प्रायः नष्ट-भ्रष्ट कर डाला है, उसे देख अत्यन्त दुःख होता है। रास के इन पाँच अध्यायों में भगवान के लिये ‘योगेश्वरेश्वर’ ‘आत्मन्यवद्धसौरतः’ आदि महत्त्वपूर्ण विशेषणों का प्रयोग किया गया है। अन्त में यह भी कहा गया है कि जो कोई इस चरित्र को सुनेगा, वह भक्ति प्राप्त करके अपने हृदय के विकार और हृदय की काम-वासना को शीघ्र दूर कर देगा। ‘हृद्रोगमाश्वपहिनोत्यचिरेणधीरः।’ जिस चरित्र के सुनने और समझने से काम-वासना का विलय हो जाय, उस चरित्र को कोई कामोद्दीपक कहे तो इससे बढ़कर अनर्थ और क्या हो सकता है? जिस समय भगवान ने गोपियों से कहा कि तुम घर लौटकर अपने-अपने पति, पिता, पुत्र आदि की सेवा करो, उस समय वे गोपियाँ कहती हैं- हे भगवान ! विषय-वासनाओं को छोड़कर हम आपकी शरण आयी हैं; क्योंकि आप ही तो हम लोगों के पति, पिता, पुत्र आदि के अन्तरात्मा हैं, तब फिर हमें उन विकारशील दुनियावी झंझटों की ओर प्रेरित न कीजिये और अपने चरणों में स्थान दीजिये।
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