श्रीकृष्णांक
श्याम की वंशी
जो व्रजबालाएँ उस समय गो-दोहन करती थी, उनके कानों में जैसे ही वंशी की ध्वनि प्रविष्ट हुई कि वे गो-दोहन छोड़कर अत्यन्त उत्सुकता के साथ कान्त के उद्देश्य से दोड़ चलीं, कोई रसोई में दूध गरम कर रही थीं, इतने में ही वंशी बजी। अग्नि के ताप से दूध उफन रहा था परन्तु उसका तनिक भी ख्याल न करके दौड़ पड़ीं। कोई-कोई भोजन के लिये बैठे हुए घर के लोगों की थालियों में भोजन परोस रही थीं, वंशी-ध्वनि सुनते ही उन्होंने परोस के पात्र को अलग रखकर दौड़ना आरम्भ किया। कोई गोचारण से लौट हुए थके-माँदे पति की चरण-सेवा करती थीं, वंशी की ध्वनि कान में पड़ते ही उन्मत्त की नाई पति की शुश्रूषा का कार्य छोड़कर यमुना-तटकी ओर भाग छूटीं। कोई-कोई भोजन करने के लिये बैठी थीं; परन्तु वंशी ध्वनि सुनते ही इतनी पागल हुई कि भूख-प्यास की निवृत्ति होने के पहले ही वह भोजन छोड़कर बिना हाथ-मुँह धोये ही बाहर निकल पड़ीं। कोई-कोई गोद में लिये हुए बालक को स्तनपान करा रही थीं, वे भी उनको रोते हुए गोद से उतारकर दौड़ चलीं। कोई शरीर में चन्दन लेप कर रही थीं और कोई शरीर मल रही थीं तो काई आँखों में अंजन लगा रही थीं; वे सब-की-सब हठात् अपना-अपना कार्य छोड़कर घर से बाहर निकल पड़ीं उस समय उनको वस्त्राभूषण धारण करने का भी कुछ विचार न रह गया, सब मानो विज्ञिप्त हो उठीं, सभी गोविन्दापहृतचित्त होकर श्रीकृष्ण के समीप उपस्थित होने के लिये खूब तेजी से दौड़ी ! इसको क्या अभिसार कहेंगे ? अभिसार करने वाली रमणी तो भयभीत होती है, पीछे से कोई देखता न हो इस आशंका से वह लोगों की नजर बचाकर अपने प्रिय के समीप जाती है। इस बात को सभी जानते हैं। परन्तुगोपियों के इस अभूतपूर्व अभिसार में न लज्जा है, न भय है, न किसी प्रकार के संकोच का लेश है और न लौकिक अभिसार के समान पूर्व सकेंत की तनिक अपेक्षा ही है। तात्पर्य यह कि इस अपूर्व अभिसार में आत्म तृप्ति की काई भी कामना नहीं है। भोगस्पृहा की संकीर्णता और मलीनता रत्तीभर भी नहीं है। जिस वंशी के गाने ने ऐसे अश्रुतपूर्व और अनुभूतपूर्व अलौकिक अभिसार की सृष्टि की थी वह वंशी क्या भारत में एक बार फिर न बजेगी ? वंशी के अहान को सुनकर जिस समय व्रजगोपियाँ श्यामसुन्दर से मिलने के लिये झुण्ड-की-झुण्ड चल पड़ीं, उस समय क्या उनकी इस भवोन्तादमयी वृत्ति का प्रतिरोध किसी ने नहीं किया ? किया तो था, परन्तु वह सर्वतोभावेन विफल हुआ था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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