श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण
इस श्लोक में भगवान ने हेतुपूर्वक स्पष्ट शब्दों में अनन्य भगवद्भजनकर्ता पुरुष को ही ‘साधु’ बताया है। साधु होने का मुख्य हेतु सम्यग्व्यवसाय है। परमदयालु सर्वरक्षक सर्वस्वामी परमात्मा ही हारे रक्षक हैं- इस प्रकार दृढ़ अध्याय जिसको है, वही साधु है। जो अनन्य-प्रयोजन होकर परमात्म भजन में भोग्यताबुद्धि से लगा हो वही साधु है। ऐसे केवल परमात्म-दर्शन-कांक्षी अनन्य-प्रयोजन साधुओं के परित्राणार्थ ही भगवान का अवतार हुआ करता है। हमें यहाँ अन्य अवतारों के विषय में कुछ भी कहना नहीं है, श्रीकृष्ण परमात्मा ने अवतार लेकर अवतार-प्रयोजन को किस प्रकार सिद्ध किया, यही हम आगे दिखावेंगे। यद्यपि ‘साधवः क्षीणपापास्स्युः’ इस प्रमाण के अनुसार पापरहित पुरुष ही साधु कहलाने-योग्य होता है, किन्तु ऐसी साधुता भगवदनन्य भक्त को आप-से-आप प्राप्त हो जाती है। यह बात स्वयं भगवान ने ही कही है-'क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शाश्वचछांतिं निगच्छति' अर्थात भगवदनन्यभजन के प्रभाव से उसके समसत पाप नष्ट हो जाते हैं और वह धर्मात्मा बन जाता है। भगवद्भजन का यह प्रभाव है। यथाग्निरुद्धतशिख: कक्षं दहति सानिल:। अर्थात जिनके हृदय में भगवान का वास है उनके समस्त किल्बिष उसी प्रकार दग्ध हो जाते हैं, जैसे प्रज्वलित अग्नि के सम्बन्ध से सूखी घास का ढेर भस्म हो जाता है। ऐसे साधुओं की दर्शनापेक्षाओं को पूर्ण करने के लिये परमात्मा अवतार लेते हैं। जब साधुओं के इष्टपूरण के लिये परमात्मा को अवतार लेना पड़ा, तब उन्होंने ‘एका क्रिया द्वयर्थकरी बभूव्’ न्याय से साधुओं के अनिष्ट का निवारण भी उसी समय कर देना उचित समझा और किया। इस प्रकार साधुओं के अनिष्ट का निवारण करना ही ‘‘दुष्कृतां विनाशः’’ के रूप में अवतार का दूसरा प्रयोजन बताया गया है। जिन दुष्ट असुर-राक्षसों का संहार परमात्मा ने अवतार लेकर किया था, उसकी आवश्यकता, केवल दुष्कृत्यों के साधुओं के प्रति अनिष्टाचरण के कारण ही आ पड़ी। अन्यथा भगवान के लिये असुर राक्षसो के संहार करने का कोई कारण नहीं बताया जा सकता। परमात्मा तो ‘देवानां दानवानां च सामान्यमधिर्दवतम्!’ इस प्रमाण के अनुसार देवताओं के समान ही असुर-राक्षसों के साथ भी सम्बन्ध रखते हैं। खास श्रीकृष्ण भगवान की ही यह उक्ति- 'न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रिय:' -इस बात को स्पष्ट कर देती है कि परमात्मा को संसारी जीवमात्र के साथ किसी प्रकार का द्वेष मात्र नहीं हे। यदि यह बात सत्य है तो फिर परमात्मा ने असुर-राक्षसों का संहार क्यों किया ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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