श्रीकृष्णांक
जन्माष्टमी
मथुरा में कंस की भावना ऐसी ही थी; मगध देश में जरासन्ध का ऐसा ही खयाल था; चेदि देश में शिशुपाल की यही मनोदशा थी; जलाशय में रहने वाला कालिया नाग यही मानता था; द्वारका पर चढ़ाई करने वाले कालयवन की यही फिलासफी थी; महापापी नरकासुर को यही शिक्षा मिली थी; और दिल्ली का सम्राट कौरवेश्वर भी इसी वृत्ति में पलकर बड़ा हुआ था। ये तमाम महापराक्रमी राजा अन्धे या अज्ञान न थे। उनके दरबार में इतिहासवेत्ता, अर्थशास्त्र विशारद और राजधुरंधर अनेक विद्वान थे। वे अपने शास्त्रों का मन्थन करके उनका नवनीत निकालते और अपने सम्राटों के सामने रखते थे। परन्तु जरासन्ध कहता- ‘आपके ऐतिहासिक सिद्धान्तों को रहने दीजिये; मेरा पुरुषार्थ अपने बुद्धिबल और बाहुबल से आपके इन सिद्धान्तों को मिथ्या सिद्ध करने में समर्थ है।’ कालयवन कहता- ‘मैं एक ही अर्थशास्त्र जानता हूँ, दूसरे देशों को लूटकर उनका धन छीन लेना। यही धनवान बनने का एकमात्र आसान, सीधा आर इसी कारण सशास्त्र मार्ग है।’ शिशुपाल कहता- ‘न्याय अन्याय की बात प्रजा के आपसी कलह में चल सकती है। हम तो सम्राट ठहरे। हमारी जाति ही जुदा है। प्रतिष्ठा और पद ही हमारा धर्म है।’ कौरवेश्वर कहता- ‘जितने रत्न हैं, सब हमारी विरासत है; वे हमारे ही पास आने चाहिये। ‘यतो रत्नभुजो वयम्’- (क्योंकि हम रत्नभोगी हैं, रत्न का उपयोग करने के लिये पैदा किये गये हैं।) दुनियाँ में जितने सरोवर हों सब हमारे ही विहार के लिये हैं। बगैर लडे़ हम किसी को सूई की नोक बराबर भी ज़मीन न देंगे। पक्षपात शून्य नारद ने केस को सचेत कर दिया था कि पराये शत्रु के मुकाबले में तू भले सफल हुआ हो, पर तेरे साम्राज्य के अन्दर- अरे तेरे परिवार के अन्दर ही तेरा शत्रु पैदा होगा। जिस सगी बहन को तूने आश्रित दासी की स्थिति में रखा है उसी के पुत्र के हाथों मेरा नाश होगा, क्योंकि वह धर्मात्मा होगा। उसका तेजोवध करने के तू जितने प्रयत्न करेगा, वे सब उसी के अनुकूल हो जायँगे। कंस ने मन में विचार किया- 'Fore warned is forearmed' समय से पहले यदि बाँध न बाँधा तो हम इतिहासज्ञ कैसे? हम सम्राट कैसे?’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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