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श्रीकृष्णांक
कृष्ण – कृष्ण कहते मैं तो कृष्ण हो गया !
करुणाकर कृष्ण, करुणा करो ! दयासागर कृष्ण, दया दिखलाओ ! कृपालु कृष्ण, द्रवित हो जाओ, राधारमण कृष्ण, मुझ में भी रम जाओ ! दीनतापहारी देव कृष्ण, मेरी दीनता पर तरस खाओ ! मुरली मनोहर कृष्ण, अपनी बांकी झांकी दिखाओ। अशरण-शरण कृष्ण, मुझे शरण दो। भक्तवत्सल कृष्ण, भावमय प्रेम से मुझे धन्य करो ! बालकृष्ण, मुझे ‘मुकुट की लटकन, पगन की पटकन तथा लहराती हुई काली अलकन के साथ, मधुर मुस्कान सहित मुख की मटकन की छटा’ दिखलाओ ! वंशीधर कृष्ण, मुझे वंशी की संगीत सुधा पिला दो ! लीलाविहारी कृष्ण, मुझे अपनी लीला की बहार दिलखा दो ! मानिनी गोपांगनाओं के मान को दूर करने के अभिप्राय से अन्तर्धान होने के बाद उनका विरह विलाप सुनकर पुन: प्रकट होने वाले प्रेम-कृष्ण, मेरे सम्मुख भी प्रकट होकर मेरा परिताप हरो ! द्रौपदी की लाज रखने वाले कृष्ण, तनिक अपने भक्त की भी लाज रखो ! गजराज को उबारने वाले कृष्ण, मुझ डूबते को उबारो ! खम्भ फाड़कर प्रकट हो प्रह्लाद की रक्षा करने वाले कृष्ण, इस दीन की भी व्यथा हरो ! राधाकृष्ण, गोपीकृष्ण ! श्याम कृष्ण ! केशव कृष्ण ! देवकृष्ण ! गोपकृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण !!! ‘कृष्ण-कृष्ण कहते मैं तो कृष्ण हो गया’ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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