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हाय, कहाँ पाऊँ उन्हें। किससे पूछूँ उनका पता ? वन-विटपों को पूछूँ ? वनस्पतियों को पूछूँ ? गुल्म-लताओं को पूछूँ ? पशु-पक्षियों से पूछूँ ? अच्छा, वृक्षराज पीपल, दयाकर बतलाओ, पीतपटधारी कहाँ है ? रसराज रसाल, राधारमण कहाँ हैं ? पुनीत पाकरी, पुरुषोत्तम कहाँ है ? बिल्वविद्रुम, बतलाओ, विशुद्ध विलासी वृन्दावनविहारी कहाँ हैं ? प्यारे प्रियाल, प्राणिमात्र के प्रिय राम कहाँ हैं ? गर्वीले गूलर, गोविन्द कहाँ हैं ? कमनीय कचनार, केशव कहाँ हैं ? मदार, मुरारी कहाँ हैं ? प्यारी जूही, जगदीश्वर कहाँ है ? मानिनी मालती, माधव कहाँ हैं ? अनूठे अनार, तुमने तो आनन्दकन्द को नहीं देखा ? शोकहर अशोक, श्याम का पता बताकर मेरा शोक दूर करो। तरुणि तुलसिके, तुम्हीं ने तो कहीं कृष्ण को नहीं छिपा रखा ? कदम्ब, मुकुन्द कहाँ हैं ? वकुलवल्लरिके, तुम भी नहीं जानती वनमाली कहाँ हैं ? चारु-चमेली, चितचोर का पता बताओ। पुष्पराज गुलाब, गोपीनाथ कहाँ गये ? हाय, पीले पुष्पों से लदे हुए गेंदे को भी गोवर्धनधारी का पता नहीं मालूम।
निम्बराज, नील-नीरद वर्ण वाले नारायण कहाँ हैं ? ललित-लतिकाओं, तुम्हारे बीच में ही तो कहीं लीलाधर नहीं जा छिपे ? कलित-कलिकाओं, तुमने तो कुन्द-कुसुममाला पहने कमल किशोर को जाते नहीं देखा ? कोकिला, तू ‘कुहू-कुहू’ की कूज से किसे बुला रही है ? कृष्ण को ? प्यारे पपीहे, ‘पिय-पिय’ कहकर तू किसकी रट लगाये है ? प्यारे मुरली मनोहर की ? वंशीधर की ? संसार के सार श्याम सुन्दर की ? हाय, कहाँ ढूँढूँ ? कहीं तो वह दिखलायी नहीं पड़ते ? किससे पूछूँ ? कोई तो नहीं बतलाता। सताये हुए को सभी सताते हैं। देखो न, पेड-पत्ते, फल-फूल, लता-बेल, वापी-तडाग, सभी की बन आयी है। मेरी दशा देखकर तरस खाना तो दूर, कोई हँसता है, कोई मुँह बिचकाता है, कोई छेडखानी करता है, कोई खिल्ल्यिां उड़ाता है, कोई अकेला और अनाथ समझकर भय दिखलाता है। .............
खैर, कोई हानि नहीं, सब सहना पड़ेगा और बार-बार उन्हीं से पूछना होगा। हे घुमड़-घुमड़ घिरते हुए, और घहर-घहर करके भयभीत करने वाले श्यामघन ! मुझे घनश्याम का पता बतला दो, तुम्हारे हाथ जोड़ता हूँ। हे मकरन्द के मद से मतवाले बने हुए मिलिन्दों, मुझे पहले मदनमोहन का पता बतला दो, फिर मस्ती में भरकर खूब झूमना। हे ‘कल-कल’ प्रवाहिनी कामिनी कलिन्द जे, तू ही मुझ पर तरस खा और एक बार अपने को कान्त के दर्शन करा दे, फिर मुझे कल देकर, ‘कल-कल’ की रागिनी अलाप।
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