यारो सुनो य दधिके लुटैया का बालपन,
औ मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।
मोहनसरूप नृत्य करैया का बालपन,
बन बनके ग्वाल गौवैं चरैया का बालपन ।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण कन्हैया के बालपन ।।
जाहिर में सुत वो नन्द जसोदा के आप थे,
वरना वो आपी माई थे और आपी बाप थे ।
परदे में बालपन के ये उनके मिलाप थे,
जोती-सरूप कहिये जिन्हें सो वो आप थे ।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण कन्हैया के बालपन ।।
सब मिल के यारो कृष्ण मुरारी की बोलो जै,
गोविन्द, छैल, कुंजबिहारी की बोलो जै ।
दधिचोर, गोपीनाथ, बिहारी की बोलो जै,
तुम भी नजीर कृष्ण मुरारी की बोलो जै ।
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन,
क्या क्या कहूँ मैं कृष्ण कन्हैया के बालपन ।।
एक अन्य स्थान पर मियां नजीर कहते हैं–
तारीफ करूँ मैं अब क्या क्या उस मुरली धुन के बजैया की,
नित सेवा-कुंज फिरैया की औ बन-बन गऊ चरैाया की ।
गोपाल बिहारी बनवारी दुख-हरना मेहर-करैया की,
गिरधारी सुन्दर श्याम बरन औ पंदड जोगी भैया की ।
यह लीला है उस नन्द-ललन मनमोहन जसुमत-छैया की,
रख ध्यान सुनो, दण्डौत करो, जै बोलो कृष्ण कन्हैया की ।।