श्रीकृष्णांक
जन्माष्टमी का उत्सव
जन्माष्टमी के दिन यदि हम गाय की पूजा करें तो उसमें कुछ भी बुराई न होगी। गाय की पूजा करके हम पशु को परमेश्वर नहीं मानते, परतु उस पूजा द्वारा प्रेम और कृतज्ञता प्रकट करते हैं। यदि हम नदी, तुलसी और गाय की पूजा का सच्चा रहस्य समझकर इनकी पूजा करेंगे तो में अन्त:करण की महान-से-महान शिक्षा प्राप्त होगी, रस-वृत्ति विकसेगी और हृदय पवित्र बनेगा। हर एक पूजा में समानभाव नहीं होता। पूजा कृतज्ञता के कारण हो सकती है, स्वामिभक्ति के कारण हो सकती है, प्रेम के कारण हो सकती है, आत्म निवेदन वृत्ति से हो सकती है अथवा स्व-स्वरूपानुसन्धान से हो सकती है। इस दृष्टि से गाय की पूजा करने में एकेश्वरवादी या निरीश्वरवादी को भी कोई आपत्ति न होनी चाहिये। निरीश्वरवादी ऑगस्टस कॉम्ट क्या मानव जाति का पुतला बनाकर उसकी पूजा करता था। श्रावण के महीने में बहुतेरी गायें ब्याती हैं। घर की नन्हीं-नन्हीं बालायें यदि कृतज्ञतावश गाय की और इधर-उधर फुदकते हुए सुन्दर नन्हें बछडे़ की हलदी कुमकुम से पूजा करें तो कितनी प्रेमवृत्ति जाग उठे। कन्याशालाओं में श्रीकृष्ण जयन्ती का उत्सव अनेक प्रकार से मनाया जा सकता है। अनुवादक– काशीनाथ नारायण त्रिवेदी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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