श्रीकृष्णांक
श्री श्रीराधातत्त्व
आनन्द के बिना कोई एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता, वैष्णवाचार्य कहते हैं कि आनन्दमय भगवान श्रीकृष्ण निजानन्द के यत्किंचित आभास द्वारा अखिल जगत के गोप्ता या रक्षक हैं। इसलिये वे नित्य ही गोप हैं और उनकी श्रीराधा आदि सहचरियां नित्य ही गोपी हैं। ‘उपजीवन्ति मात्रां हि तस्यानन्दस्य सर्वदा भूतानि सकलानि’ वैष्णवगण यह श्रुतिवाक्य कहा करते हैं कि– ‘समस्त जीवमात्र उस एकमात्र अद्वितीय परमानन्द के आभास के आश्रय से जीवित हैं’। अतएव जबकि भगवदानन्द के आभास को छोड़कर जीवन रक्षा का अन्य कोई उपाय नहीं है, तब वही रक्षक, गोप्ता या नित्य गोप हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। .......... ध्यान से आनन्दमय भगवान प्रेममय गोपियों के साथ मिलकर नित्य ही जो परम रसास्वादन का आदान-प्रदान करते रहते हैं, उसी का नाम ‘रासलीला’ है। यही प्रेमानन्द का आनन्दमय सम्मेलन हैं। लीला-रसमय श्रीकृष्ण भक्तों पर अनुग्रह करने के लिये आत्माराम और आप्तकाम होकर भी विविध लीला करते हैं। श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है– गोस्वामीपाद श्रीरूप ने कृष्णामृत में लिखा है – लीला दो प्रकार की है– प्रकट और अप्रकट। श्रीकृष्ण लीलामयरूप से सर्वदा सर्वत्र क्रीड़ा करते हैं। इतना ही नहीं रसिकेन्द्र शिरोमणि श्रीकृष्ण ने स्वयं रास के महान माहात्म्य का वर्णन किया है– सन्ति यद्यपि मे व्राज्या लीलास्तास्ता मनोहरा: । ‘यद्यपि सैकड़ों मनोहर लीलाएं हैं, परन्तु रास की बात याद आते ही मेरे मन में जाने किस भाव का उदय होता है, उसे मैं कह नहीं सकता’। रासपंचाध्यायी की व्याख्या में श्रीपाद सनातन गोस्वामी महोदय ने भी इस उक्ति का अनुसरण किया है। मूल श्लोक यह है– अनुग्रहाय भक्तानां मानुषं देहमाश्रित: । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पद्मपुराण
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