श्रीकृष्णांक
भगवान श्रीकृष्ण का प्रभाव
सत्यं ते प्रतिजानामि कृष्णे वाष्पो निगुह्यताम् । हे द्रौपदी ! अश्रुओं को रोको, मैं तुम्हारे से सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ कि तू अपने पतियों को शीघ्र ही राज्यश्री से युक्त और निहतशत्रु अर्थात जिनके शत्रु मर चुके हैं ऐसे देखेगी। इससे सिद्ध है कि भगवान को युद्ध अवश्यमेव कराना था, केवल संसार की मर्यादा रखने के लिये तथा अपने प्यारे पाण्डवों का कलंक दूर करने के लिये ही उनका हस्तिनापुर जाकर सन्धि के लिये चेष्टा करना समझा जाता है। युद्ध में अस्त्र ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करके प्रियभक्त भीष्म के लिये चक्र ग्रहण करने में भी उनकी इच्छा ही कारण है। भीष्म पर्वत का यह प्रसंग देखने से मालूम होता है कि यह बड़े ही रहस्य और वीर रस से भरी हुई प्रेममयी लीला है। भीष्म पितामह बड़े ही भक्त और श्रद्धालु थे। उनकी प्रसन्नता के लिये ही भगवान ने यह विचित्र क्रिया की। वास्तव में भगवान की सम्पूर्ण क्रियाएं निर्दोष और दिव्य हैं। उनकी दिव्यता का जानना साधारण बात नहीं है। यद्यद्विभूतिमत्सत्वं श्रीमदूर्जितमेव वा । जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात ऐश्वर्ययुक्त एवं कान्तियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस उसको तू मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न हुई जान। अथवा हे अर्जुन ! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रयोजन है, मैं इस सम्पूर्ण जगत को (अपनी योगमाया के) एक अंशमात्र से धारण करके स्थित हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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