|
भगवान श्रीकृष्ण बोले, बताओ तो सही क्या बात है ? तब उद्धव ने कहा कि अर्जुन के प्रत्येक रोम से ‘श्रीकृष्ण-कृष्ण की’ आवाज आ रही है। रुक्मिणीजी पैर दबा रही थीं, वे बोलीं, महाराज, पैरों से भी वही आवाज आती है। भगवान ने समीप जाकर सुना तो उन्हें भी स्पष्ट सुनायी दिया कि अर्जुन के प्रत्येक केश से निरन्तर ‘जय कृष्ण कृष्ण, जय कृष्ण कृष्ण’ की ध्वनि निकल रही है। कुछ और ध्यान दिया तो विदित हुआ कि उसके शरीर के प्रत्येक रोम से यही ध्वनि निकल रही है। तब तो भगवान उसे जगाना भूलकर स्वयं भी उसके प्रेम-पाश में बँध गये और गद्गद होकर स्वयं उसके चरण दबाने लगे। भगवान के नवनीत कोमल कर कमलों का स्पर्श होने से अर्जुन की निद्रा और भी गाढ़ हो गयी। इधर महादेव और पार्वती को प्रतीक्षा करते हुए जब बहुत देर हो गयी तो वे मन ही मन कहने लगे, ‘भगवान कृष्ण को गये बहुत विलम्ब हो गया। मालूम होता है उन्हें भी निद्रा ने घेर लिया है’। तब उन्होंने ब्रह्माजी को बुलाकर अर्जुन को जगाने के लिये भेजा। किन्तु अन्त:पुर में पहुँचने पर ब्रह्माजी भी अर्जुन के रोम-रोम से कृष्ण-कृष्ण की ध्वनि सुनकर और स्वयं भगवान को अपने भक्त के पांव पलोटते देखकर अपने प्रेमावेश को न रोक सके एवं अपने चारों मुखों से वेद स्तुति करने लगे। अब क्या था, ये भी हाथ से गये।
जब ब्रह्माजी की प्रतीक्षा में श्रीमहादेव और पार्वती को बहुत समय हो गया तो उन्होंने देवर्षि नारदजी का आवाहन किया। अब की बार वे अर्जुन को जगाने का बीड़ा उठाकर चले, किन्तु शयनागार का अद्भुत दृश्य देख-सुनकर उनसे भी न रहा गया। वे भी अपनी वीणा की खूटियां कसकर हरि-कीर्तन में तल्लीन हो गये। जब उनके कीर्तन की ध्वनि भगवान शंकर के कान में पड़ी तो उनसे भी और अधिक प्रतीक्षा न हो सकी, वे भी पार्वती जी के साथ तुरन्त ही अन्त:पुर में पहुँच गये। वहाँ अर्जुन के रोम-रोम से ‘जय कृष्ण, जय कृष्ण’ का मधुर नाद सुनकर और सब विचित्र देखकर वे भी प्रेम-समुद्र की उत्ताल तरंगों में उछलने-डूबने लगे। अन्त में उनसे भी न रहा गया, उन्होंने भी अपना त्रिभुवन मोहन ताण्डव नृत्य आरम्भ कर दिया, साथ ही श्रीपार्वतीजी भी स्वर और ताल के साथ सुमधुर वाणी से हरि-गुण गाने लगीं। इस प्रकार वह सम्पूर्ण समाज प्रेम-समुद्र में डूब गया, किसी को भी अपने तन-मन की सुध-बुध नहीं रही, सभी प्रेमोन्मत्त हो गये। भक्तराज अर्जुन के प्रेम-प्रवाह ने सभी को सराबोर कर दिया। अर्जुन तुम्हारा वह अविचल प्रेम धन्य है।
|
|