श्रीकृष्णांक
श्रीकृष्ण और उद्धव
इस स्थिति को प्राप्त होने के लिये गौरांग प्रभु तक कैसे उत्कण्ठित हो गये थे– नयनं गलदश्रुधारया वदनं गद्गदरुद्धया गिरा । नेत्रों से अश्रुधारा बह चली हो, गद्गद कण्ठ से एक अक्षर भी न निकल पाता हो, अष्ट सात्त्विक भावों के विकास होने से शरीर रोमांचित हुआ हो, नाम-स्मरण करते-करते मेरी यह दशा कब होगी ? भक्तवर तुकाराम भी इसी कृपादान की वांछा करते हैं – सद्गदित कंठ दाटो। येणें फुटो हदृय । ‘हे विट्ठल ! आपके अखण्ड चिन्तन से गद्गद-कण्ठ होकर हृदय भर आवे, नेत्रों से सदा अश्रु-प्रवाह होता रहे, आनन्द से शरीर रोमांचित हो, मेरा मन इसी कृपादान की इच्छा कर रहा है’। श्रीकृष्ण ने उद्धव से जो गोपियों के प्रेम का वर्णन किया है, उसे एकनाथी भागवत में इस प्रकार व्यक्त किया है– मज गोकुलीं असतां। माझें ठायीं आसक्त चित्तां ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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