कृष्णमना श्रीकृष्ण-मति -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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राग पीलू - ताल कहरवा


कृष्णमना, श्रीकृष्ण-मति, कृष्णजीवना शुद्ध।
कृष्णेन्द्रिया, सुचारु शुभ, कृष्णप्रिया विशुद्ध॥
कृष्ण-कथा मुख में सदा, कृष्ण-नाम-गुणगान।
कृष्ण सुभूषण श्रवण शुचि, कृष्ण-गुण-निरत कान॥
कृष्ण-रूप मधु नेत्र में, नासा कृष्ण-सुगन्ध।
कृष्ण-सुधा-रस-रसमयी रसना नित निर्बन्ध॥
कृष्ण-स्पर्श-संलग्र नित अंग बिना व्यवधान।
कृष्ण मधुर रस कर रहा मन अतृप्त नित पान॥
नित्य कराती श्याम को मधुर अमिय-रस पान।
नित्य पूर्ण करती सभी श्याम-काम, रख ध्यान॥
श्याम-प्रेम शुचि रत्न की अमित मनोहर खान।
श्याम-सुखकरण गुण अमित अनुपम नित्य निधान॥
भीतर-बाहर पूर्ण नित सुन्दर श्याम सुजान।
दीख रहा सब श्याममय, नित नव मधुर महान॥
विश्वविमोहन श्याम की मनमोहिनि, रसधाम।
श्याम-चित-‌उन्मादिनी श्यामा दिव्य ललाम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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