कृष्णदास ने और सब कृष्ण भक्तों के समान राधा-कृष्ण के प्रेम को लेकर श्रृंगार रस के ही पद गाए हैं। ‘जुगलमान चरित’ नामक इनका एक छोटा-सा ग्रंथ मिलता है। इसके अतिरिक्त इनके बनाए दो ग्रंथ और कहे जाते हैं- 'भ्रमरगीत' और 'प्रेमतत्त्व निरूपण'। इनका कविता काल सन 1550 के आसपास माना जाता है।
कृष्णदास के प्रसिद्ध पद
- बैद को बैद गुनी को गुनी -कृष्णदास
- मो मन गिरिधर छबि पै अटक्यो -कृष्णदास
- देख जिऊँ माई नयन रँगीलो -कृष्णदास
- तरनि तनया तट आवत है -कृष्णदास
- कंचन मनि मरकत रस ओपी -कृष्णदास
- प्रातकाल प्यारेलाल आवनी बनी -कृष्णदास
- गोकुल गाम सुहावनो सब मिलि खेलें फाग -कृष्णदास
- सघन कुंज भवन आज फूलन की मंडली रचि -कृष्णदास
- नंद घरुनि वृषभान घरुनि मिलि -कृष्णदास
- रंगीली तीज गनगौर आज चलो भामिनी -कृष्णदास
- नवल निकुंज महेल मंदिर में -कृष्णदास
- कहत जसोदा सब सखियन सों -कृष्णदास
- लाल गोपाल गुलाल हमारी आँखिन में जिन डारो जू -कृष्णदास
- खेलत वसंत निस पिय संग जागी -कृष्णदास
- आज कछु देखियत ओर ही बानक -कृष्णदास
- तरणि तनया तीर आवत हें प्रात समे -कृष्णदास
- लीला लाल गोवर्धनधर की -कृष्णदास
- परम कृपाल श्री वल्लभ नंदन -कृष्णदास
- फल्यो जन भाग्य -कृष्णदास
- नवल वसंत नवल वृंदावन -कृष्णदास
- श्री गिरिधर लाल की बानिक ऊपर -कृष्णदास
- शरण प्रतिपाल गोपाल रति वर्धिनी -कृष्णदास
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