कृपी

कृपी पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य की पत्नी थीं। इन्हीं के गर्भ से तेजस्वी अश्वत्थामा का जन्म हुआ था, जिसके मस्तक पर जन्म से ही मणि विराजमान थी और जिसने महाभारत के युद्ध में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कृपी कृपाचार्य की बहन थीं।

  • गौतम के एक प्रसिद्ध पुत्र हुए थे- शरद्वान गौतम। वे घोर तपस्वी थे। उनकी घोर तपस्या ने इन्द्र को चिन्ता में डाल दिया था।
  • इन्द्र ने शरद्वान गौतम की तपस्या को भंग करने के लिए जानपदी नामक एक देवकन्या को उनके आश्रम में भेजा। उसके सौंदर्य पर मुग्ध होकर शरद्वान गौतम का अनजाने ही वीर्यपात हो गया। वह वीर्य सरकंडे के समूह पर गिरकर दो भागों में विभक्त हो गया, जिससे एक कन्या और एक बालक का जन्म हुआ।
  • शरद्वान धनुर्वेत्ता थे। वे धनुष-बाण तथा काला मृगचर्म वहीं पर छोड़कर कहीं चले गये।
  • शिकार खेलते हुए महाराज शान्तनु को वे दोनों शिशु प्राप्त हुए। बालक का नाम कृप और कन्या का नाम कृपी रखकर शान्तनु ने उनका लालन-पालन किया।
  • शरद्वान गौतम ने गुप्त रूप से कृप को धनुर्विद्या सिखाई।
  • कृप ही बड़े होकर कृपाचार्य बने तथा धृतराष्ट्र और पांडु की संतान को धनुर्विद्या की शिक्षा देने लगे।
  • कृपी का विवाह भारद्वाज के पुत्र द्रोणाचार्य के साथ हो गया, जिनसे अश्वत्थामा का जन्म हुआ।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 39 |


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