कुंज मैं बिहरत नवल किसोर -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग सामंत




कुंज मैं बिहरत नवल किसोर।
एक अचंभो देखि सखी री उग्यौ सूर बिनु भोर।।
तहँ घन स्याम दामिनी राजत द्वै ससि चारि चकोर।
अबुज खजन मधुप मिलि क्रीड़त एकहिं खोर।।
तहँ द्वै कीर बिंब फल चाखत बिद्रुम मुक्ता चोर।
चारि मुकुर आनन पर झलकत नाचत सीगनि गोर।।
तामैं एक अधिक छवि सोहै हंस कमल इक ठौर।
हेमलता तमाल गहि द्वै फल मानौ देति अँकोर।।
कनकलता नीलम राजत उपमा कहै सब थोर।
'सूरदास' प्रभु इहिं बिधि क्रीड़त ब्रज-जुवती-चित-चोर।। 60 ।।

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