किहिं बिधि करि कान्हहिं समुझैहौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ



किहिं बिधि करि कान्हहिं समुझैहौं?
मैं ही भूलि चंद दिखरायौ, ताहि कहत मैं खैहौं।
अनहोनी कहुँ भई कन्हैया, देखी-सुनी न बात।
यह तौ आहि खिलौना सबकौ, खान कहत तिहिं तात।
यहै देत लवनी नित मोकौं, छिन-छिन साँझ-सवारे।
बार-बार तुम माखन मांगत, देउँ कहा तैं प्यारे?
देखत रहौ खिलौना चंदा, आरि न करौ कन्हाई।
सूर स्याम लिए हँसति जसोदा, नंदहि कहति बुझाई।।189।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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