किकिंणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे 2

किकिंणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे

अच्युत, केशव, राम, कृष्ण, दामोदर, वासुदेव, हरि, श्रीधर, माधव, गोपिकावल्ल्भ तथा जानकीनायक श्री रामचंद्रजी को मैं भजता हूँ ॥1॥
अच्युत, केशव, सत्यभामापति, लक्ष्मीपति श्रीधर, राधिका जी द्वारा आराधित, लक्ष्मी निवास, परम सुंदर, देवकी नंदन, नंदकुमार का मैं चित्त से ध्यान करता हूँ ॥2॥
जो विभु हैं, विजयी हैं, शखं ‌- चक्रधारी हैं, रुक्मिणी जी के परम प्रेमी हैं, जानकी जी जिनकी धर्मपत्नी हैं तथा जो व्रजागंनाओं के प्राणाधार हैं उन परमपूज्य, आत्मस्वरूप, कंसविनाशक, मुरली मनोहर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥3॥
हे कृष्ण ! हे गोविंद ! हे राम ! हे नारायण ! हे रामनाथ ! हे वासुदेव ! हे अजेय ! हे शोभानाथ ! हे अच्युत ! हे अनंत ! हे माधव ! हे अधिक्षज (इंद्रियातीत) ! हे द्वारकानाथ ! हे द्रौपदीरक्षक ! (मुझ पर कृपा कीजिये) ॥4॥
जो राक्षसों पर अति कुपित हैं, श्री सीता जी से सुशोभित हैं दण्डकारण्य की भूमि की पवित्रता के कारण हैं, श्री लक्ष्मण जी द्वारा अनुगत हैं, वानरों से सेवित हैं और श्री अगस्त्यजी से पूजित हैं; वे रघुवंशी श्री रामचंद्र्जी मेरी रक्षा करें ॥5॥
घेनुक और आरिष्टासुर आदि का अनिष्ट करने वाले, शत्रुअओं का ध्वंस करने वाले, केशी और कंस का वध करने वाले, वंशी को बजाने वाले, पूतना पर कोप करने वाले, यमुना तट विहारी बाल गोपाल मेरी सदा रक्षा करें। ॥6॥
विद्युत्प्रकाश के सदृश जिनका पीताम्बर विभाषित हो रहा है, वर्षा कालीन मेघों के समान जिनका अति शोभायान शरीर है, जिनका वक्ष:स्थल वनमाला से विभूषित है और जिनके चरण युगल अरुणवर्ण हैं; उन कमल नयन श्री हरि को मैं भजता हूँ ॥7॥
जिनका मुख घुघँराली अलकों से सुशोभित है, मस्तक पर मणिमय मुकुट शोभा दे रहा है तथा कपोलों पर कुण्डल सुशोभित हो रहे हैं; उज्ज्वल हार, केयूर (बाजूबंद), ककंण और किकिंणीकलाप से सुशोभित उन मञ्जुलमूर्ति श्री श्यामसुंदर को मैं भजता हूँ ॥8॥
जो पुरुष इस अति सुंदर छंद वाले और अभीष्ट फलदायक अच्युताष्टक को प्रेम और श्रद्धा से नित्य पढ़ता है, विश्वम्भर, विश्वकर्ता श्री हरि शीघ्र ही उसके वशीभूत हो जाते हैं ॥9॥



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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