का न कियौ जन-हित जदुराई।
प्रथम कह्यौ जो वचन दयारत, तिहिं बस गोकुल गाइ चराई।
भक्तबछल बपु धरि नरकेहरि, दनुज दह्यौ, उर दरि, सुरसाँइँ।
बलि बल देखि, अदिति-सुत कारन, त्रिपद ब्याज तिहुँपुर फिरि आई।
एहि थर वनी क्रीड़ा गज-मोचन और अनंत कथा स्त्रुति गाई।
सूर दीन प्रभु-प्रगट-बिरद सुनि अजहुँ दयाल पतत सिर नाई।।6।।