का न कियौ जन-हित जदुराई -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग रामकली


का न कियौ जन-हित जदुराई।
प्रथम कह्यौ जो वचन दयारत, तिहिं बस गोकुल गाइ चराई।
भक्तबछल बपु धरि नरकेहरि, दनुज दह्यौ, उर दरि, सुरसाँइँ।
बलि बल देखि, अदिति-सुत कारन, त्रिपद ब्‍याज तिहुँपुर फिरि आई।
एहि थर वनी क्रीड़ा गज-मोचन और अनंत कथा स्‍त्रुति गाई।
सूर दीन प्रभु-प्रगट-बिरद सुनि अजहुँ दयाल पतत सिर नाई।।6।।
      

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः