काहु के बैर कहा सरै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री




काहु के बैर कहा सरै।
ताकी सरबरि करै सो झूठौ जाहि गुपाल बड़ौ करै।
ससि-सन्‍मुख जो धूरि उड़ावै, उलटि ताहि कैं मुख परै।
चिरिया कहा समुद्र उलीचै, पवन कहा परबत टरै ?
जाकी कृपा पतित ह्वै पावन, पग परसत पाहन तरै।
सूर केस नहिं टारि सकै कोउ, दाँत पौसि जौ जग मरै।।234।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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