काहि कहत प्रतिपाल कियौ।
मोसौ कहत होइ जनि ऐसो, नैन ढरत नहिं भरत हियौ।।
संकित नंद त्रास बानी सुनि, बिलंब करत यह क्यौ न चलै।
कंस मारि रजधानी दीन्ही, व्रज तै बहुरौ आनि मिलै।।
मन ही मन ऐसी उपजावत, वै उत ब्रह्म ब्रह्मदरसी।
'सूर' पिता को, मातु कौन है, रहत सबनि मै वै परसी।।3113।।