कान्ह कही सो तौ नहि ह्वै है -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

Prev.png




कान्ह कही सो तौ नहिं ह्वै है।।
किधौ नई सिखई सीखे हरि, निजअनुराग बिछौहै।।
संचित करै पेट मैं राखे, वे बातै बिकचोहै।
स्याम सु गाहक पाइ सयाने, छोरि दिखाये सोहै।।
सोभा निधि सागर नागर मन जग जुबती हठि मोहै।।
लिये रूप गुन ज्ञान गठरिया, पहिलै ठग्यौ ठग ओहै।
ये निरगुन सर मारि कमल घर, चाहै करै अयौ है।।
‘सूरदास’ नागर नारि निकट, जिन्है आज सब मोहै।। 183 ।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः