कानस्वामी
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पूरा नाम | कानस्वामी |
जन्म | 19वीं सदी |
जन्म भूमि | काठियावाड़, गुजरात |
कर्म भूमि | भारत |
भाषा | गुजराती |
प्रसिद्धि | कृष्ण भक्त कवि |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | वैराग्य का उदय होने पर कानस्वामी गिरनार चले गये। साधु-संतों के दर्शन का उनके हृदय पर बड़ा प्रभाव पड़ा, उनका जीवन बदल गया। लकड़भारती नामक एक महात्मा ने उन पर कृपा की और अपना शिष्य बना लिया। |
कानस्वामी का नाम गुजरात के भक्त कवियों में लिया जाता है। समस्त काठियावाड़ क्षेत्र में उनकी ख्याति थी। वह भूमि-भाग उनके तपस्यापूर्ण जीवन से धन्य और पवित्र हो गया था, चारों ओर भगवद भक्ति की खेती लहरा उठी थी।
जन्म
कानस्वामी का जन्म उन्नीसवीं सदी में काठियावाड़ तालुका के बोडका नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता दसनामी गोसाई गृहस्थ थे। उनके बचपन में ही उनके पिता ने परलोक की यात्रा की, जिस कारण पालन-पोषण और शिक्षा का भार माता के कन्धों पर आ पड़ा था।
वैराग्य का उदय
माता ने कानस्वामी का विवाह पास के ही ग्राम में कर दिया। कानस्वामी का मन गृहस्थी में नहीं लगता था। सहसा वैराग्य का उदय होने पर वे गिरनार चले गये। साधु-संतों के दर्शन का उनके हृदय पर बड़ा प्रभाव पड़ा, उनका जीवन बदल गया। लकड़भारती नामक एक महात्मा ने उन पर कृपा की और अपना शिष्य बना लिया। जब महात्मा लकड़भारती को यह पता चला कि कानस्वामी विवाहित हैं, तब उन्होंने कानस्वामी को घर जाकर गृहस्थी चलाने का आदेश दिया। वे गुरु की आज्ञा से घर चले आये; उनकी माता का उस समय देहान्त हो चुका था।
एकान्त वास
कानस्वामी का अधिकांश समय ईश्वर-भजन और पूजन तथा चिन्तन-स्मरण में ही बीतने लगा। अब उनकी पत्नी को आशंका हुई कि वे कहीं फिर से घर छोड़कर चले न जायें। एक बार वे घर से नाता तोड़कर जाने वाले ही थे कि साध्वी पत्नी ने उन्हीं के साथ रहकर ईश्वर-भजन करने की इच्छा प्रकट की; कानस्वामी ने इसको स्वीकार कर लिया। अपने ग्राम से थोड़ी दूर पर ही उन्होंने एकान्त स्थान में अपना निवास स्थान स्थिर किया। वे सपत्नीक कुटी में प्रसन्नतापूर्वक रहकर जीवन बिताने लगे।
ईश्वर-भक्ति
आस पास के लोगों में ही नहीं, समस्त काठियावाड़ क्षेत्र में कानस्वामी की ख्याति फैल गयी। वह भूमि-भाग उनके तपस्यापूर्ण जीवन से धन्य और पवित्र हो गया, चारों ओर भगवद् भक्ति की खेती लहरा उठी। निकट के एक धनी व्यक्ति बालजी भाई कानस्वामी में बड़ी श्रद्धा-भक्ति रखते थे। वे यथाशक्ति उनकी सेवा में लगे रहते थे। कानस्वामी ने ईश्वर-भक्ति को ही जीवन की अक्षय सम्पत्ति स्वीकार किया। उनका जीवन अत्यन्त सरल और पवित्र था।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लेखक-गोसाई पीताम्बरपुरी, प्रेमपुरी
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