कहि राधा ये को है री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


कहि राधा ये को है री।
अति सुंदरि साँवरी सलोनी, त्रिभुवन-जन-मन मोहै री।।
और नारि इनकी सरि नाही, कहो न हम तन जोहै री।
काकी सुता, बधू है काकी, काकी जुवती धौ है री।।
जैसी तुम तैसी है येऊ, भली बनी तुमसौ है री।
सुनहु 'सूर' अति चतुर राधिका, येइ चतुरनि की गौ हैं री।।2162।।

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