कहियौ अति अबला दुख पावै।
हिरन पटनपति प्रविसत ज्यौ है बार बार समुझावै।।
सारँगरिपु ता पतिरिपु वा रिपु ता रिपु तनहि जरावै।
हरि-वाहन-वाहन-पति-धाइक ता सुत आनि बचावै।।
सुर-रिपु-गुरु-वाहन ता रिपुपति ता चढि भेष दिखावै।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन कौ बिरहिनि तपति बुझावै।। 22 ।।