कहा न कीजै अपने काजै।
दिन दस ऐसैहू करि देखौ, जौ हरि मिलै जोग के साजै।।
माथै जटा पहिरि उर कथा, ल्यावहु, भस्म अग मुख माजै।
सिंगी दंड मेखला सेली, लोचन मूँदि रहौ बिनु आँजै।।
सनमुख ह्वै सर सहौ सयानी, नाहिंन बचत आजु के भाजै।
जोग बिरह के बीच परम दुख, मरियत है इहिं दुसह दुराजै।।
ऊधौ कहै सत्य करि मानहु, बृथा बदति सजनी बेकाजै।
ज्यौं जमुनाजल छाँड़ि ‘सूर’ प्रभु, लीन्हे बसन तजी कुल लाजै।।3883।।